- कॉपी लिंक
आज (सोमवार, 1 दिसंबर) गीता जयंती है, आज मोक्षदा एकादशी व्रत है। मान्यता है कि द्वापर युग में मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी पर महाभारत के युद्धभूमि में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जीवन का सार समझाते हुए गीता का ज्ञान दिया था। गीता के उपदेश जीवन के हर क्षेत्र को संतुलित और सरल बना सकते हैं। इन्हें अपनाने से मन की उलझनें दूर होती हैं, कर्तव्य के प्रति स्पष्टता मिलती है और व्यक्ति कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य और विवेक बनाए रख सकता है। जानिए गीता कुछ खास सूत्र, जिन्हें अपनाने से हमारी सभी समस्याएं दूर हो सकती हैं…

प्रसादे सर्वदुःखानां हानिरस्योपजायते।
प्रसन्नचेतसो ह्याशु बुद्धिः पर्यवतिष्ठते।।
(अध्याय 2, श्लोक 65)
अर्थ- जब व्यक्ति के मन में प्रसन्नता आती है, तब उसके सारे मानसिक दुख दूर हो जाते हैं, और उसकी बुद्धि शीघ्र ही स्थिर हो जाती है।

यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते।।
(अध्याय 3, श्लोक 21)
अर्थ- श्रेष्ठ पुरुष जैसा-जैसा आचरण करते हैं, दूसरे सामान्य लोग भी वैसा-वैसा ही आचरण करते हैं। श्रेष्ठ पुरुष जो आदर्श स्थापित करता है, लोग उसी का अनुसरण करते हैं।

तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर।
असक्तो ह्याचरन्कर्म परमाप्नोति पूरुषः।।
(अध्याय 3, श्लोक 19)
अर्थ – श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं – तू आसक्तिरहित होकर सदा कर्तव्य कर्म कर, क्योंकि आसक्ति (मोह) से रहित होकर कर्म करता हुआ मनुष्य परम लक्ष्य को प्राप्त करता है।

तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।
उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः।।
(अध्याय 4, श्लोक 34)
अर्थ – श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि गुरु के पास विनम्र प्रणाम करके, उचित प्रश्न पूछकर और श्रद्धा से सेवाभाव रखते हुए जाओ, वे तुम्हें वह ज्ञान सिखाएंगे, जिसके द्वारा तुम सत्य को जान सकोगे।



