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CUET UG 2025 का रिजल्ट आने ही वाला है। ऐसे में स्टूडेंट्स के मन में कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। ऐसा होना लाजमी भी है क्योंकि यही वो समय है जहां से उनके फ्यूचर की दिशा तय होगी।
स्टूडेंट्स के करियर और UG एडमिशन को लेकर ऐसे ही कुछ कंफ्यूजन को दूर करने के लिए हमने बात की सीनियर करियर काउंसलर लोकमान सिंह से।
सवाल- CUET रिजल्ट के बाद क्या होता है?
जवाब- CUET (UG) 2025 का रिजल्ट घोषित होते ही सभी स्टूडेंट अपना स्कोर कार्ड cuet.nta.nic.in से डाउनलोड करें। इस साल 205 से ज्यादा यूनिवर्सिटीज और कॉलेजों जिनमें केंद्रीय, राज्य, डीम्ड और निजी संस्थान शामिल हैं एडमिशन के लिए CUET स्कोर को मान्यता दी जा रही है।
लेकिन सिर्फ CUET में शामिल होना एडमिशन की गारंटी नहीं है।
एडमिशन के लिए….
- यूनिवर्सिटी का एलिजिबिलिटी क्राइटेरिया
- मेरिट लिस्ट रैंक
- डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन
- मेडिकल फिटनेस
- इंटरव्यू
ये सभी भी पास करना होगा। हर यूनिवर्सिटी का अपना अलग तरीका और जरूरतें हो सकती हैं। सभी स्टूडेंट्स संबंधित यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पर जाकर जानकारी ले सकते हैं।
सवाल- काउंसलिंग कैसे होती है?
जवाब- काउंसलिंग एक जरूरी प्रोसेस है जिसके जरिए स्टूडेंट्स यूनिवर्सिटी में अपनी पसंद के कोर्स और कॉलेज में एंट्री के लिए अप्लाई करते हैं। यह प्रोसेस हर यूनिवर्सिटी अपने स्तर पर संचालित करती है। काउंसलिंग का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि योग्य स्टूडेंटों को उनकी योग्यता, स्कोर और पसंद के आधार पर सीटें आवंटित की जाएं।
CUET स्कोर और अन्य योग्यता की शर्तों जैसे कैटेगरी, रिजर्वेशन पॉलिसी आदि के आधार पर हर यूनिवर्सिटी अपना काउंसलिंग और एडमिशन शेड्यूल जारी करती है। स्टूडेंटस को हमेशा संबंधित यूनिवर्सिटी की वेबसाइट और काउंसलिंग पोर्टल पर अपडेट देखते रहना चाहिए।
सवाल- काउंसलिंग में कैसे आवेदन करें?
जवाब- काउंसलिंग प्रोसेस के तहत स्टूडेंट्स यूनिवर्सिटी के काउंसलिंग पोर्टल पर आवेदन करते हैं। ध्यान दें कि कई यूनिवर्सिटीज का काउंसलिंग पोर्टल उनकी रेगुलर वेबसाइट से अलग होता है। उदाहरण के लिये दिल्ली यूनिवर्सिटी (DU) की नियमित वेबसाइट www.du.ac.in है लेकिन काउंसलिंग प्रोसेस के लिए अलग पोर्टल ugadmission.uod.ac.in है।
स्टूडेंट्स इस काउंसलिंग पोर्टल पर जाकर रजिस्ट्रेशन करते हैं, CUET स्कोर कार्ड और अन्य आवश्यक दस्तावेज़ अपलोड करते हैं। इसके बाद स्टूडेंट अपनी पसंद के कॉलेज/संस्थान और कोर्स की प्रेफरेंस भरते हैं। ये कॉलेज यूनिवर्सिटी से संबन्धित हो सकते हैं या खुद यूनिवर्सिटी के अधीन हो सकते हैं।

सवाल- एडमिशन कैसे मिलता है?
जवाब- एडमिशन का फैसला यूनिवर्सिटी द्वारा निर्धारित एडमिशन क्राइटेरिया, एलिजिबिलिटी, मेरिट रैंक, डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन आदि पर आधारित होता है। NTA का एडमिशन प्रोसेस में कोई डायरेक्ट रोल नहीं है।
आम तौर पर एडमिशन नीचे दिये गये तीन में से किसी एक प्रकार से होता है ।
1. काउंसलिंग आधारित एडमिशन- रिजल्ट के बाद यूनिवर्सिटीज अपना काउंसलिंग पोर्टल खोलती हैं। स्टूडेंट्स पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कर अपनी पसंद के कोर्स और कॉलेज भरते हैं। फिर संबंधित काउंसलिंग सिस्टम CUET स्कोर, कैटेगरी और सीट उपलब्धता के आधार पर उन्हें सीट अलॉट होती है । बंद होने के बाद यूनिवर्सिटी एक तय सिस्टम के तहत सीट अलॉटमेंट प्रक्रिया शुरू करती है। सबसे पहले फर्स्ट राउंड एडमिशन लिस्ट जारी होती है। इसी प्रकार मल्टीपल राउंड्स में एडमिशन लिस्ट तब तक जारी होती रहती है जब तक सीटें भरती नहीं हैं। अक्सर इसके एक से अधिक कई राउंड होते हैं ।
उदाहरण-
दिल्ली यूनिवर्सिटी (DU) में एड्मिशन के लिए ugadmission.uod.ac.in पर रजिस्ट्रेशन करना होता है। यूनिवर्सिटी का CSAS (सेंट्रल सीट एलोकेशन सिस्टम) CUET स्कोर और प्रेफरेंस पर आधारित विभिन्न राउंड्स में एडमिशन की लिस्ट जारी करता है ।
2. डायरेक्ट एप्लिकेशन (CUET मेरिट आधारित एडमिशन)- स्टूडेंट सीधे यूनिवर्सिटी या कॉलेज की वेबसाइट पर अप्लाई करते हैं। CUET स्कोर के आधार पर यूनिवर्सिटी मेरिट लिस्ट बनाती है और शॉर्टलिस्टिंग के आधार पर एडमिशन देती है।
उदाहरण-
एमिटी यूनिवर्सिटी CUET स्कोर के आधार पर डायरेक्ट एडमिशन देती है। हालांकि कुछ कोर्सेज में इंटरव्यू भी हो सकता है।
3. हाइब्रिड मोड (CUET + अन्य राउंड)- CUET स्कोर के साथ कुछ संस्थान इंटरव्यू, SOP या पोर्टफोलियो रिव्यू भी करते हैं।
उदाहरण-
TISS (टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज) CUET स्कोर और इंटरव्यू/SOP के आधार पर एडमिशन देते हैं।
महत्वपूर्ण सलाह- काउंसलिंग के किसी भी राउंड की लिस्ट में नाम आने पर काउंसलिंग/ एडमिशन पोर्टल पर जाकर अपनी सीट कंफर्म करें। इसके बाद डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन होता है। उसके बाद स्टूडेंट को ऑनलाइन पोर्टल के जरिए फीस भरनी होगी। समय-सीमा का पालन करें और संबंधित यूनिवर्सिटी की वेबसाइट से अपडेट लेते रहें।

सवाल- सीट लॉक कैसे होती है?
जवाब- जब किसी स्टूडेंट को काउंसलिंग के किसी राउंड में सीट अलॉट होती है और अगर स्टूडेंट उस सीट को बिना किसी शर्त के स्वीकार कर लेता है तो वह सीट उस स्टूडेंट के नाम पर लॉक हो जाती है । अब यह सीट किसी अन्य काउंसलिंग राउंड में अन्य किसी स्टूडेंट को नहीं दी जा सकती ।
सवाल- पसंद का कॉलेज देखें या कोर्स?
जवाब- वर्तमान ट्रेंड की बात करें तो कॉलेज को कई बार प्राथमिकता दी जाती है क्योंकि स्टूडेंट और अभिभावक कॉलेज के एम्बियंस, शिक्षा की गुणवत्ता, फैकल्टी, पहुंच, एप्रोच और प्लेसमेंट की संभावनाओं को महत्व देते हैं। बड़े नाम वाले कॉलेजों का आकर्षण नेटवर्किंग और भविष्य की संभावनाओं के कारण भी बना रहता है। वहीं दूसरी ओर कोर्स का चुनाव अधिकतर स्टूडेंट अपनी रुचि, आकांक्षा और समय के ट्रेंड के आधार पर करते हैं। वे यह देखते हैं कि कौन सा कोर्स उनके करियर लक्ष्यों और शौक से मेल खाता है।
यह विकल्प कोर्स की प्रकृति के हिसाब से भी बदलता है। प्रोफेशनल और टेक्निकल कोर्सेज (जैसे इंजीनियरिंग, कंप्यूटर साइंस, मैनेजमेंट) में कॉलेज की भूमिका अधिक अहम हो जाती है क्योंकि वहां के इन्फ्रास्ट्रक्चर और प्लेसमेंट से करियर पर बड़ा असर पड़ता है। वहीं आर्ट्स, साइंस या वोकेशनल कोर्सेज में कोर्स की पसंद अक्सर पहले आती है क्योंकि पढ़ाई की गहराई और दिलचस्पी से ही करियर का रास्ता तय होता है।
स्टूडेंट्स को सबसे पहले कोर्स को प्राथमिकता देनी चाहिए क्योंकि यही वह क्षेत्र है जिसमें आप आने वाले सालों तक काम करेंगे। आपकी पढ़ाई, आपकी स्किल और आपका करियर इसी कोर्स पर निर्भर करेगा। कॉलेज दूसरा फैक्टर होना चाहिए क्योंकि अच्छे कोर्स के साथ कॉलेज का माहौल और सुविधाएं आपके विकास को और बेहतर बना सकती हैं।
सवाल- कम मार्क्स आने पर क्या करें?
जवाब- यह सवाल हर उस स्टूडेंट के मन में आता है जिसे CUET में उम्मीद से कम अंक मिले हों। ऐसी स्थिति में घबराने की बजाय सही कदम उठाना जरूरी होता है। आइए जानते हैं कि कम स्कोर पर भी आगे का रास्ता कैसे बनाया जा सकता है….
1. अपनी कट-ऑफ और स्कोर का विश्लेषण करें- सबसे पहले यह देखें कि आपके स्कोर और आपकी पसंदीदा यूनिवर्सिटी/कोर्स की कट-ऑफ में कितना अंतर है। कई यूनिवर्सिटी/कॉलेज की कट-ऑफ अलग-अलग राउंड में घटती है। इसलिए पहले राउंड में मौका न मिले तो हिम्मत न हारें, आगे के राउंड और स्पॉट राउंड का इंतजार करें।
2. कम कट-ऑफ वाले कॉलेज/कोर्स पर फोकस करें- ऐसी यूनिवर्सिटी और कॉलेज खोजें जहां कट-ऑफ अपेक्षाकृत कम जाती हो। कोर्स के ऐसे विकल्प देखें जो आपके इंटरेस्ट से जुड़ा हो लेकिन जहां स्कोर की मांग कम हो।
3. स्पॉट राउंड्स और ओपन काउंसलिंग का इंतजार करें- कई बार काउंसलिंग के बाद सीटें खाली रह जाती हैं। उस स्थिति में यूनिवर्सिटीज स्पॉट राउंड या ओपन काउंसलिंग आयोजित करती हैं जहां कम स्कोर वालों को भी मौका मिल सकता है।
4. वैकल्पिक कोर्स या प्रोग्राम चुनें- अगर मनचाहा कोर्स न मिल पाए तो संबंधित या वैकल्पिक कोर्स (जैसे वोकेशनल प्रोग्राम, सर्टिफिकेट कोर्स) पर विचार करें। बाद में इंटरनल अपग्रेड या लेटरल एंट्री से मनचाहे कोर्स में जा सकते हैं।
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