नई दिल्ली. 8 साल पहले बॉलीवुड में एक फिल्म आई थी जिसमें कोई बड़ा हीरो, कोई नामी एक्ट्रेस नहीं था. दो मंझे हुए एक्टर्स के कंधों पर इस फिल्म को सफल बनाने की जिम्मेदारी थी, जो उस वक्त दर्शकों के बीच कुछ खास पॉपुलर भी नहीं थे. ये फिल्म राजकुमार राव और पंकज त्रिपाठी स्टारर न्यूटन है. न्यूटन उस वक्त बॉक्स-ऑफिस पर वो सफलता हासिल नहीं कर पाई थी जिसकी वो हकदार थी, लेकिन इस फिल्म खूब तारीफ हुई थी.
फिल्म न्यूटन की कहानी है नूतन कुमार नाम के एक सरकारी अफसर की, जो हमेशा ईमानदारी से काम करने में भरोसा रखता है. उसका नाम थोड़ा पुराना लगता है, इसलिए लोग उसे मज़ाक में “न्यूटन” कहने लगते हैं. लेकिन न्यूटन को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. वो हर हाल में सही काम करने वाला इंसान है – भले ही सामने कितनी भी मुश्किलें क्यों ना आ जाएं.
एक दिन उसे एक ऐसा चुनावी काम दिया जाता है, जहां कोई जाना नहीं चाहता. उसे भेजा जाता है छत्तीसगढ़ के जंगलों में, एक ऐसे इलाके में जहां नक्सली खतरा बना रहता है और जहां लोग वोटिंग को लेकर बिल्कुल जागरूक नहीं हैं. यहां के आदिवासी ना चुनाव को समझते हैं, ना ही उन्हें इससे कोई मतलब है.
आत्मा सिंह से होता है न्यूटन का सामना
न्यूटन को ये जिम्मेदारी मिलती है कि वह इस इलाके में चुनाव कराए. उसके साथ जाते हैं कुछ अन्य कर्मचारी और एक सिक्योरिटी टीम, जिसका नेतृत्व करते हैं सीआरपीएफ कमांडर आत्मा सिंह, जिसका किरदार पंकज त्रिपाठी ने निभाया है. आत्मा सिंह एक अनुभवी ऑफिसर हैं, जो इस इलाके के खतरों को भली-भांति समझते हैं. उनका मानना है कि वोटिंग सिर्फ एक औपचारिकता है – सरकार को दिखाना है कि सब जगह चुनाव हो रहा है, चाहे असल में कोई वोट डाले या नहीं, लेकिन न्यूटन इस बात से सहमत नहीं होता.
उसूलों का टकराव है न्यूटन
वह चाहता है कि जब वह आया है तो ईमानदारी से हर एक मतदाता को वोट डालने का अधिकार मिलना चाहिए. यहां से शुरू होती है न्यूटन और आत्मा सिंह के बीच की सोच की लड़ाई – एक तरफ सिस्टम को समझने वाला व्यावहारिक ऑफिसर, और दूसरी तरफ उस सिस्टम को सच्चाई से निभाने की कोशिश करने वाला एक अकेला अफसर.
फिल्म में दिखाया गया है कि आदिवासी लोग खुद नहीं जानते कि वोटिंग क्या है. उन्हें किसी ने उनकी भाषा में समझाया ही नहीं. यहां तक कि उन्हें डर है कि अगर वे वोट देंगे तो नक्सली मार सकते हैं. न्यूटन फिर भी डटा रहता है – वह चुनाव कराने की जिद पर अड़ा रहता है, भले ही वोट सिर्फ एक इंसान का ही क्यों ना हो.
इस फिल्म की सबसे अनोखी बात ये भी न इसमें कोई मसाला था, न कोई हीरोइन और न कोई ग्लैमरस एलीमेंट, लेकिन कहानी की सच्चाई और राजकुमार राव के किरदार की ईमानदारी इसे सबसे बेहतरीन फिल्मों में शामिल करने में सफल रहती है. साल 2017 में आई ये फिल्म अब अमेजन प्राइम वीडियो पर स्ट्रीम कर रही है. इसको 7.6 रेटिंग मिली है.