
भिंडरावाले और उनके समर्थक, जिनमें मेजर जनरल शाबेग सिंह (एक पूर्व सैन्य अधिकारी जो उनके सैन्य रणनीतिकार थे) शामिल थे, स्वर्ण मंदिर के अकाल तख्त में डेरा डाले हुए थे. भारतीय सेना ने 1 जून 1984 को परिसर को घेर लिया. 3 जून से गोलाबारी शुरू की. 5-6 जून को मुख्य ऑपरेशन शुरू हुआ, जिसमें टैंक, तोपें और भारी हथियारों का उपयोग किया गया. भारी गोलीबारी और सैन्य कार्रवाई के बीच, भिंडरावाले और उनके कई समर्थक अकाल तख्त के आसपास छिपे हुए थे.
सेना के हाथों कब हुई भिंडरावाले की मृत्यु
लोग क्यों मानते थे कि भिंडरावाले जीवित हैं?
ये दावा किया गया कि वो विदेश में हैं
कई सालों तक भिंडरावाले को जिंदा माना जाता रहा
ये कई बरसों तक सिख समुदाय में प्रचलित रही कि जनरैल सिंह भिंडरावाले जिंदा हैं. ये कहानियां बिना सबूत के थीं, लेकिन भावनात्मक और राजनीतिक माहौल ने इन्हें विश्वसनीय बना दिया. इसके बाद 1986 में ऑपरेशन ब्लैक थंडर (प्रथम) और 1988 में ऑपरेशन ब्लैक थंडर सेकेंड के बाद पंजाब में उग्रवादी गतिविधियों पर कड़ा नियंत्रण हुआ. उन्होंने सिख उग्रवाद को कमजोर किया. स्वर्ण मंदिर को फिर से सैन्य गतिविधियों का केंद्र बनने से रोका गया. इसके साथ ही भिंडरावाले के जीवित होने की अफवाहें धीरे-धीरे कम होने लगीं, क्योंकि कोई ठोस सबूत सामने नहीं आया.
क्यों ऐसी कहानियां फैलती रहीं
हालांकि कुछ खालिस्तान समर्थक संगठनों और विदेशी सिख समुदायों में यह धारणा 1980 के दशक के अंत तक बनी रही. यह आंशिक रूप से इसलिए था क्योंकि भिंडरावाले की करिश्माई छवि और सिख समुदाय में केंद्र सरकार के प्रति अविश्वास ने उनकी “अमरता” की कहानियों को जीवित रखा. भिंडरावाले के परिवार विशेष रूप से उनकी पत्नी बिबी प्रीतम कौर और दोनों बेटों (इशर सिंह और इंद्रजीत सिंह) ने भी खालिस्तान आंदोलन से दूरी बनाए रखी. सार्वजनिक रूप से कभी ऐसी अफवाहों का समर्थन नहीं किया. इससे भी धीरे-धीरे यह धारणा कमजोर हुई.
कब ये अफवाहें खत्म हुईं
क्या स्वर्ण मंदिर में सुरंगे हैं
अमृतसर के स्वर्ण मंदिर (हरमंदिर साहिब) परिसर में सुरंगों के होने की बात समय-समय पर चर्चाओं में रही है. 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान, यह अफवाह व्यापक रूप से फैली थी कि स्वर्ण मंदिर परिसर में अकाल तख्त के आसपास सुरंगों का एक जाल था. कुछ लोगों का मानना था कि जरनैल सिंह भिंडरावाले और उनके सशस्त्र समर्थकों ने इन सुरंगों का उपयोग हथियारों को छिपाने, गुप्त आवाजाही या भागने के लिए किया.
भारतीय सेना ने ऑपरेशन के दौरान अकाल तख्त और आसपास के क्षेत्रों में भारी हथियारों और बंकरों की खोज की थी, लेकिन सुरंगों के बारे में कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई. कुछ सैन्य अधिकारियों ने अनौपचारिक रूप से छोटी भूमिगत संरचनाओं या गुप्त कमरों के होने की बात कही, लेकिन इन्हें “सुरंगों का जाल” कहना सही नहीं होगा.
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