‘निकाह’ और ‘बागबान’ जैसी फिल्मों से डॉ. अचला नागर ने सामाजिक मुद्दों को सिनेमा में उतारा. उन्होंने सिनेमा में अपने योगदान के लिए फिल्मफेयर और दादा साहेब फाल्के अकादमी सम्मान सहित कई पुरस्कार जीते.
डॉ. अचला नागर का जन्म 2 दिसंबर 1939 को लखनऊ में हुआ था. अमृतलाल नागर की बेटी होने के कारण, उन्होंने बचपन से ही सही और नैतिक लेखन का माहौल पाया. उनकी लेखन की शुरुआत पिताजी के कागजों पर नजर डालने से हुई. अमृतलाल नागर द्वारा गांधीजी की हत्या पर लिखा पत्र उन्हें ‘मानवता का मतलब’ सिखा गया और यही मानवता उनकी पटकथाओं की नींव बनी. बीएससी करने के बाद, उन्होंने एमए किया और फिर हिंदी साहित्य में पीएचडी की. उनकी कहानियों की जड़ें गहरे अध्ययन, शोध और यथार्थ की समझ में थीं. लखनऊ में पैदा होने के बावजूद, आगरा से उनका गहरा नाता था. यहां रंगमंच (थिएटर) में उनकी भागीदारी ने उन्हें संवादों की सीधी और प्रभावी प्रस्तुति की कला सिखाई. इससे उनके सिनेमाई संवादों में गहराई और जीवंतता आई.
फिल्म ‘निकाह’ की लिखी पटकथा
डॉ. अचला नागर की सिनेमाई यात्रा 1982 में बीआर चोपड़ा की ‘बीआर फिल्म्स’ के साथ शुरू हुई. उन्होंने अपनी पहली बड़ी फिल्म ‘निकाह’ की पटकथा लिखी, जिसने आते ही बॉक्स ऑफिस पर धूम मचा दी और एक गंभीर सामाजिक बहस छेड़ दी. ‘निकाह’ की कहानी मुस्लिम समाज में ‘ट्रिपल तलाक’ और महिला के अधिकारों पर आधारित थी. यह 80 के दशक के कमर्शियल सिनेमा के लिए एक साहसी कदम था. डॉ. नागर की कलम ने इस संवेदनशील मुद्दे को बहुत ही सटीकता से पेश किया. इसके लिए उन्हें 1983 में सर्वश्रेष्ठ संवाद का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला. इसके बाद उन्होंने कई सामाजिक मुद्दों पर फिल्में दीं, जैसे ‘आखिर क्यों’, ‘मेरा पति सिर्फ मेरा है’, ‘निगाहें’, ‘नगीना’, ‘ईश्वर’ और ‘सदा सुहागिन’. ‘आखिर क्यों’ को भारतीय स्त्री की सशक्त आवाज के रूप में देखा जाता है. उन्होंने पुरुष वर्चस्व और सामाजिक रूढ़ियों को सरल तरीके से पेश किया.
लिखने लगीं टीवी सीरियल्स
डॉ. अचला नागर के करियर की सबसे बड़ी घटना ‘बागबान’ (2003) थी. यह फिल्म एक इमोशन बन गई, जिसने सबको अपने आगोश में ले लिया. इसमें रिटायरमेंट के बाद माता-पिता के अलगाव और बच्चों द्वारा उनकी उपेक्षा को इतने प्रभावी तरीके से दिखाया गया कि यह भारतीय पारिवारिक संरचना पर जरूरी चर्चा बन गई. सिनेमा में सफलता के बावजूद, डॉ. अचला नागर ने साहित्य के प्रति अपनी निष्ठा नहीं छोड़ी. एक समय वह टेलीविजन के ‘डेली सोप’ लिख रही थीं, जिससे उन्हें अच्छी-खासी कमाई हो रही थी. लेकिन 2015 में अपने पिता की शताब्दी की तैयारी के दौरान, उन्होंने ‘डेली सोप’ लेखन छोड़ दिया. अपने पिता की साहित्यिक आकांक्षा को पूरा करने के लिए, उन्होंने उपन्यास ‘छल’ लिखा. यह उपन्यास परिवार और सौहार्द पर आधारित है. डॉ. अचला नागर की विरासत दो क्षेत्रों में फैली है. उन्हें फिल्म ‘निकाह’ के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार और ‘बाबुल’ के लिए दादा साहेब फाल्के अकादमी सम्मान मिला, वहीं हिंदी साहित्य में योगदान के लिए साहित्य भूषण पुरस्कार और यशपाल अनुशंसा पुरस्कार से नवाजा गया.
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अभिषेक नागर News 18 Digital में Senior Sub Editor के पद पर काम कर रहे हैं. वे News 18 Digital की एंटरटेनमेंट टीम का हिस्सा हैं. वे बीते 6 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं. वे News 18 Digital से पहल…और पढ़ें


