Bollywood Iconic Movies : पिता-पुत्र की दो फिल्में चार साल के अंतराल में पर्दे पर आएं और दोनों ही फिल्में हिंदी सिनेमा के इतिहास में यादगार बन जाएं, यह सुखद संयोग हर किसी के नसीब में नहीं होता . बॉलीवुड में पिता-पुत्र ने अपना नाम अमर कर लिया. पिता ने जहां छोटे से रोल में अपना नाम कमाया वहीं उनके बेटे ने चार साल बाद आई एक फिल्म में विलन का रोल करके अपना नाम हिंदी सिनेमा के इतिहास में दर्ज कर लिया. बेटे ने अपना रोल इतनी ईमानदारी से निभाया कि पर्दे का नाम ही उनकी पहचान बन गया. पिता-पुत्र की जोड़ी कौन सी है, वो फिल्में कौन सी हैं, जिन्होंने इन दोनों को हमेशा के लिए अमर कर दिया, आइये जानते हैं…
Mera Gaon Mera Desh vs Sholay : बॉलीवुड में चार साल की अंतराल में दो ऐसी फिल्में आईं, जिनकी कहानी एकदूसरे से जुड़ी हुई है. पहली फिल्म 1971 में आई थी जिसका नाम था ‘मेरा गांव मेरा देश.’ इसी फिल्म से इंस्पायर होकर राइटर सलीम -जावेद ने शोले फिल्म की स्टोरी लिखी थी. ‘शोले’ और ‘मेरा गांव मेरा देश’ फिल्म में कई समानताएं हैं. माना जाता है कि शोले फिल्म से मिलती-जुलती कहानी ही सलीम जावेद ने लिखी थी. रमेश शिप्पी ने फिल्म का निर्देशन किया था. जीपी शिप्पी ने फिल्म को प्रोड्यूस किया था. शोले फिल्म हिंदी सिनेमा के इतिहास की आइकॉनिक फिल्म है. इसकी गिनती महान फिल्मों में होती है. इन दोनों फिल्मों में कई समानताए भी हैं. आइये जानते हैं…

दिलचस्प बात यह भी है कि ‘शोले’ फिल्म में जहां अमजद खान ने गब्बर सिंह डाकू बनकर अपना नाम इतिहास में दर्ज कराया, वहीं गब्बर सिंह तो नाम उनकी पहचान ही बन गया. मजेदार बात यह है कि अमजद खान के पिता जयंत ने ‘मेरा गांव मेरा देश’ फिल्म में मेजर जसवंत सिंह का किरदार निभाया था. वैसे उनका वास्तविक नाम जकरिया खान था. एक फिल्म में जहां पिता ने किरदार निभाया, वहीं दूसरी फिल्म में बेटे ने शानदार एक्टिंग की. हिंदी सिनेमा के इतिहास में ऐसा सुखद संयोग बहुत ही काम देखने को मिलता है.

सबसे पहले बात करते हैं 13 अगस्त 1971 में आई ‘मेरा गांव मेरा देश’ फिल्म की जिसे राज खोसला ने डायरेक्ट किया था. स्क्रीनप्ले जीआर कामत ने लिखा था. फिल्म को राज खोसला के भाई लेखराज खोसला और बोलू खोसला ने प्रोड्यूस किया था. इसमें धर्मेंद्र, आशा पारेख और विनोद खन्ना लीड रोल में नजर आए थे. विनोद खन्ना का करियर इस फिल्म से रातों-रात चमक था. वैसे ही इस फिल्म में वह एक विलेन के किरदार में थे. मजेदार बात यह भी है कि विनोद खन्ना का नाम फिल्म में जब्बर सिंह रहता है, वही शोले फिल्म में हमें ‘गब्बर सिंह’ नाम का डाकू अमजद खान के रूप में दिखाई देता है. ‘मेरा गांव मेरा देश’ फिल्म का म्यूजिक लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने तैयार किया था. गीत आनंद बक्शी ने लिखे थे. फिल्म का म्यूजिक बहुत कमाल का था. फिल्म के सभी गाने सुपरहिट थे.
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फिल्म के पॉपुलर गानों में ‘हार शरमाऊं, किस-किस को बताऊं अपनी प्रेम कहानियां’ गाने को आज ही सुना जाता है. लता मंगेशकर ने इसे अपनी सुरीली आवाज में गाया था. इसके अलावा फिल्म का एक और गाना ‘मार दिया जाए या छोड़ दिया जाए’ को भी लता मंगेशकर ने अपनी आवाज दी थी. यह गाना आज भी उतना ही फ्रेश है. ‘मेरा गांव मेरा देश’ फिल्म में धर्मेंद्र को एक्शन हीरो के तौर पर पहचान दी. यह पहला मौका था जब धर्मेंद्र पूरी तरह से एक्शन हीरो के तौर पर छा गए थे. यही से उनके करियर ने एक नई उड़ान भरी. आगे चलकर उन्होंने शोले और प्रतिज्ञा जैसी कई एक्शन फिल्में कीं. धर्मेंद्र सुपरस्टार बनकर उभरे.

मेरा गांव मेरा देश फिल्म में धर्मेंद्र बहुत ही खूबसूरत नजर आए थे. कॉमेडी, रोमांस और एक्शन हर डिपॉर्टमें में उन्होंने कमाल का अभिनय किया था. फिल्म में गांव की पागल औरत का किरदार पूर्णिमा दास ने निभाया था. उनका असली नाम मेहरबानो था जो कि महेश भट्ट की सगी मौसी थीं. मुन्नी बाई का किरदार लक्ष्मी छाया ने निभाया था. फिल्म के तीन शानदार गाने लक्ष्मी छाया पर ही फिल्माए गए थे.

<br />’मेरा गांव मेरा देश’ के लास्ट सीन के लिए गांववालों को डायरेक्टर राज खोसला ने बुलाया था. सभी को खाना भी खिलाया था. फिल्म के पांचों गाने लता मंगेशकर ने गाए थे. राजस्थान के उदयपुर के एक गांव में फिल्म की शूटिंग हुई थी. यह फिल्म सुपरहिट साबित हुई थी. यह फिल्म जब रिलीज हुई तब कोई नहीं जानता था कि यह मूवी हिंदी सिनेमा के इतिहास की आइकॉनिक फिल्म के लिए प्लॉट तैयार करेगी. जब भी शोले फिल्म का नाम लिया जाता है तो मेरा गांव मेरा देश की भी चर्चा होती है. दिलचस्प बात यह भी है कि दोनों ही फिल्मों में धर्मेंद्र ने काम किया है.

अब बात करते हैं 15 अगस्त 1975 को रिलीज हुई आइकॉनिक फिल्म ‘शोले’ की. शोले फिल्म की कहानी सलीम-जावेद ने लिखी थी. फिल्म में धर्मेंद्र, हेमा मालिनी, अमिताभ बच्चन, जया बच्चन, संजीव कुमार, एके हंगल, अमजद खान लीड रोल में थे. फिल्म में हर किसी का काम असाधारण था. ‘मेरा गांव मेरा देश’ में अजित बने धर्मेंद्र जहां सिक्का उछालकर कोई बड़ा फैसला लेते हैं, वहीं ‘शोले’ फिल्म में जय (अमिताभ बच्चन) सिक्का उछालते हैं.

मेरा गांव मेरा देश में अजित शराब पीता है. बाद में शराब छोड़ देता है. शोले में वीरू शराब पीता है. बसंती से प्यार का इजहार शराब पीकर ही गांववालों के सामने करता है. मेरा गांव मेरा देश में धर्मेंद्र, आशा पारेख को बंदूक चलाना सिखाते हैं. कुछ इसी तरह का सीन हमें शोले फिल्म में भी दिखाई देता है जहां धर्मेंद्र, बसंती यानी हेमा मालिनी को बंदूक चलाना सिखाते हैं.

मेरा गांव मेरा देश में पौने घंटे बाद ‘जब्बर सिंह’ यानी विनोद खन्ना की एंट्री होती है. वहीं शोले में एक घंटे बाद पर्दे पर गब्बर सिंह यानी अमजद खान की एंट्री होती है. मेरा गांव मेरा देश का क्लाइमैक्स सीन बहुत दमदार-इमोशनल कर देने वाला है. मेरा गांव मेरा देश जहां 13 अगस्त 1971 को रिलीज हुई थी, वहीं शोले 15 अगस्त 1975 को सिनेमाघरों में आई थी. यानी दोनों ही फिल्में अगस्त माह में रिलीज हुई थीं. शोले फिल्म पूरे एक हफ्ते तक नहीं चली थी. सभी को लगा कि फिल्म फ्लॉप हो जाएगी. एक हफ्ते बाद फिल्म ने इतिहास रच दिया. यह ऑल टाइम ब्लॉकबस्टर फिल्म में शुमार है. हिंदी सिनेमा के इतिहास में सबसे ज्यादा टिकट इस फिल्म के बिकने का वर्ल्ड रिकॉर्ड भी शोले के नाम है. शोले ने उस समय 50 करोड़ का कलेक्शन किया था.


