ताइवान को लेकर चीन और जापान के बीच तनाव इतना बढ़ गया है कि बीजिंग खुलकर कह रहा है कि वह युद्ध के लिए तैयार है. जापान ने ताइवान के पास मिसाइलें तैनात करने की घोषणा की, जिस पर चीन ने कड़ी धमकी दी. विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि एक छोटी गलती भी दोनों देशों को सीधे युद्ध में धकेल सकती है. अमेरिका-जापान सुरक्षा संधि के चलते संघर्ष बढ़ा तो अमेरिका और रूस तक इसमें कूद सकते हैं.
चीन-जापान तनाव पर क्या कह रहे एक्सपर्ट?
द सन की रिपोर्ट के मुताबिक शोधकर्ता अशोक स्वैन का कहना है कि यह स्थिति बेहद खतरनाक है. दोनों देश तलवार खींचकर खड़े हैं और राजनीतिक बयानबाजी माहौल को और ज्वलनशील बना रही है. उनके मुताबिक एक छोटी सी दुर्घटना या फिर कहें तो तीन तरीके हैं जो दोनों के बीच युद्ध भड़का सकते हैं. पहला कि लड़ाकू विमान की भिड़ंत हो य कोई पायलट गलत कदम उठा दे. वहीं दूसरा कदम समुद्र में जहाजों का टकराव युद्ध शुरू कर सकता है. वहीं तीसरा तरीका है कि चीन के पास जापान मिसाइलों को तैनात कर दे. एक छोटी सी ‘गलतफहमी वाला’ टकराव 1937 में मारको पोलो ब्रिज पर हुआ था, जिसने पूरे चीन-जापान युद्ध का दरवाजा खोल दिया था.
चीन की रेड लाइन क्या है?
स्वैन बताते हैं कि चीन के लिए सबसे गंभीर चेतावनी यह होगी कि जापान ताइवान के आसपास या उसके किसी हिस्से पर मिसाइल तैनाती कर दे. इस कदम को चीन सीधे युद्ध की शुरुआत मानेगा और तुरंत जवाब देगा. जापान पहले ही योनागुनी द्वीप पर मध्यम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलें भेजने की तैयारी कर चुका है, जो ताइवान से सिर्फ 107 किमी दूर है. जापान का तर्क है कि इससे क्षेत्र में किसी भी संभावित हमले का खतरा कम होगा, लेकिन चीन इसे अपनी सुरक्षा के लिए सीधा खतरा मान रहा है.
जापान भी हुई आक्रामक
विश्लेषकों के मुताबिक जापान, अमेरिका के समर्थन से, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पहली बार इतना खुलकर सैन्य ताकत बढ़ा रहा है. नई पीएम ताकाइची के आने के बाद टोक्यो कहीं ज्यादा आक्रामक और आत्मविश्वासी होकर चीन को चुनौती दे रहा है. यही वजह है कि बीजिंग ने जापान पर ‘चीनी ड्रैगन को उकसाने’ का आरोप लगाया है और धमकी भरे सैन्य वीडियो तक जारी किए हैं, जिनमें साफ संदेश है कि अगर आज जंग छिड़ी तो चीन तैयार है.
चीन-जापान की लड़ाई करा देगी तीसरा विश्वयुद्ध?
डोनाल्ड ट्रंप ने ताइवान को लेकर जापान और चीन के बीच विवाद में सीधे तौर पर हस्तक्षेप नहीं किया है, लेकिन जापान में उनके राजदूत जॉर्ज ग्लास ने कहा है कि चीन के ‘जबरदस्ती’ के सामने अमेरिका टोक्यो का समर्थन करता है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर चीन-जापान भिड़ते हैं तो अमेरिका शुरुआत से ही इसमें इसमें शामिल होगा, क्योंकि जापान के साथ उसका सुरक्षा समझौता है. जिसके तहत जापान पर हमला होने पर अमेरिका को उसकी रक्षा करनी ही होगी. अमेरिका के बड़े सैन्य बेस जापान में मौजूद हैं. यदि चीनी मिसाइलें या हमले इन बेसों के पास तक पहुंचते हैं तो अमेरिका का युद्ध में कूदना अनिवार्य होगा. और जब अमेरिका कूदेगा तो पश्चिमी देश, खासकर यूरोप, उसके साथ खड़े होंगे.
दूसरी तरफ, रूस अपने लंबे-समय वाले रणनीतिक साझेदारी के कारण चीन का साथ दे सकता है. औपचारिक रक्षा संधि भले न हो, लेकिन रूस-चीन गठजोड़ पिछले वर्षों में इतना मजबूत हो चुका है कि पुतिन सीधे या परोक्ष रूप से चीन के साथ खड़े दिखाई देंगे. यहां तक कि पश्चिम को बांटने के लिए पुतिन यूरोप में एक और मोर्चा खोलने की कोशिश भी कर सकते हैं.
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योगेंद्र मिश्र ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से जर्नलिज्म में ग्रेजुएशन किया है. 2017 से वह मीडिया में जुड़े हुए हैं. न्यूज नेशन, टीवी 9 भारतवर्ष और नवभारत टाइम्स में अपनी सेवाएं देने के बाद अब News18 हिंदी के इंटरने…और पढ़ें


