सर्दियों के समय यहां कदम रखना आसान नहीं होता. आसपास की पहाड़ियां बर्फ में ढंक जाती हैं. कई बार तो मंदिर की छत और सीढ़ियां भी बर्फ से भर जाती हैं. फिर भी लोग दूर-दूर से आते हैं, क्योंकि यहां पहुंचने पर मन को जो सुकून मिलता है, वह हर मौसम को न्योछावर कर देता है. शांत वातावरण, तैरती झीलऔर ऋषि पराशर का इतिहास ये तीनों मिलकर इस जगह को बेहद अनोखा बनाते हैं.
पैगोड़ा शैली का अद्भुत निर्माण
मंडी शहर से लगभग 45–48 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह मंदिर पैगोड़ा ढांचे में बना है. तीन मंज़िल वाला यह स्वरूप देखने में बेहद आकर्षक लगता है. लकड़ी की नक्काशी, कलात्मक खंभे और छतें इसे हिमालयी वास्तु की अनोखी मिसाल बनाती हैं. माना जाता है कि यह पूरा ढांचा सिर्फ एक देवदार के विशाल तने से तैयार हुआ. इसे पूरा होने में 12 दिन लगे यह बात आज भी लोगों को हैरान कर देती है.
पराशर झील और तैरता भूखंड
मंदिर के ठीक पास स्थित है पराशर झील, जिसके बीच एक तैरता भूखंड मौजूद है. यह भूखंड कभी एक ओर जाता है, कभी दूसरी ओर. स्थानीय लोग इसे देव शक्ति से जोड़ते हैं. झील की गहराई आज तक पता नहीं चल पाई, जो इसे और रहस्यमय बनाती है.
मौसम का बदलता मिजाज़
यह जगह इतनी ऊंचाई पर है कि मौसम का भरोसा नहीं किया जा सकता. अचानक बादल घिर आते हैं, बरसात शुरू हो जाती हैऔर कुछ ही मिनटों में धुंध सब कुछ ढक लेती है. यही बदलाव इसे और खूबसूरत बनाता है. गर्मियों में यहां पहुंचना आसान होता है, पर सर्दियों में रास्ते बर्फ से भर जाते हैं, फिर भी श्रद्धालु पैदल चलते हुए मंदिर पहुंचते हैं.
महर्षि पराशर का ज्ञान और कथा
पराशर ऋषि को ज्योतिष, धर्म, आयुर्वेद, वास्तु और कई अन्य विषयों में विलक्षण ज्ञान के लिए जाना जाता है. उनके ग्रंथ आज भी प्रासंगिक माने जाते हैं. एक कथा कहती है कि ऋषि पराशर ध्यान के लिए उपयुक्त जगह खोज रहे थे. जहां भी जाते, वहां पानी निकल आता था. अंत में यहां आकर जब उन्होंने ध्यान किया तो इस स्थान पर झील बन गई, जिसे आज पराशर झील कहा जाता है.
भीतर स्थापित मूर्तियां
मंदिर के गर्भभाग में ऋषि पराशर की पत्थर की मूर्ति स्थापित है. साथ ही विष्णु, शिव और महिषमर्दिनी देवी की प्रतिमाएं भी मौजूद हैं. लकड़ी और पत्थर का मेल इस जगह को एक अनोखा आध्यात्मिक अनुभव देता है.
मेले और लोक संस्कृति
झील के पास हर वर्ष दो बड़े मेले लगते हैं. होली के समय और भाद्रपद महीने की पंचमी को यहां भारी भीड़ उमड़ती है. ढोल-नगाड़े, जागरण और भंडारे इस जगह को उत्सव में बदल देते हैं.
कैसे पहुंचे?
-हवाई मार्ग: सबसे पास का हवाई अड्डा कुल्लू-मनाली (लगभग 52 किमी).
-रेल मार्ग: निकटतम स्टेशन शिमला या चंडीगढ़.
-सड़क मार्ग: मंडी से बस और टैक्सी की सुविधा आसानी से मिल जाती है. मंदिर से सौ मीटर नीचे पार्किंग भी मौजूद है.


