उत्तर भारत के ग्रामीण और शहरी व्यंजनों में हरी पत्तेदार सब्जियां एक प्रमुख स्थान रखती हैं. सरसों, पालक, सोया, चना और बथुआ के साग न केवल स्वाद में लाजवाब होते हैं, बल्कि ये पोषक तत्वों का भंडार भी हैं. सर्दियों में इनकी उपलब्धता बढ़ जाती है, और इन्हें विभिन्न तरीकों से बनाकर स्वास्थ्य और स्वाद दोनों का लाभ लिया जा सकता है.
सरसों का साग पंजाब और उत्तरी भारत का एक प्रतिष्ठित व्यंजन है. यह विटामिन K, विटामिन A और कैल्शियम से भरपूर होता है. इसे पारंपरिक रूप से मक्के की रोटी और घी के साथ परोसा जाता है. इसकी हल्की कड़वाहट और तीखापन इसे एक अनूठा स्वाद देते हैं. यह पाचन में सुधार और हड्डियों को मजबूत करने में सहायक माना जाता है.

पालक सबसे लोकप्रिय सागों में से एक है. यह आयरन, फोलेट और विटामिन C का अच्छा स्रोत है. इसे आलू के साथ आलू-पालक, पनीर के साथ पालक-पनीर, या दाल के साथ बनाया जाता है. पालक हीमोग्लोबिन के स्तर को बढ़ाने में मदद करता है और इसके एंटीऑक्सीडेंट गुण आंखों के स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक होते हैं.

सोया का साग अपनी तेज और खास खुशबू के लिए जाना जाता है. इसे अक्सर आलू या अन्य सब्जियों के साथ मिलाकर पकाया जाता है ताकि इसकी खुशबू व्यंजन में घुल जाए. यह एंटीऑक्सीडेंट्स और फाइबर से भरपूर होता है, जो पेट की समस्याओं को दूर करने में सहायता करता है. इसकी खुशबू पाचन क्रिया को उत्तेजित करती है.
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चने का साग विशेष रूप से सर्दियों में पसंद किया जाता है. यह चना पौधा जब छोटा होता है, तब इसकी कोमल पत्तियों से बनता है. यह प्रोटीन, आयरन और फाइबर का एक अच्छा स्रोत है. इसे अक्सर घी और लहसुन के तड़के के साथ बनाया जाता है. चने का साग ठंड के मौसम में शरीर को गर्म रखने और आवश्यक पोषण देने में मदद करता है.

बथुआ एक जंगली या खेत में उगने वाली खरपतवार है, जिसे साग के रूप में खाया जाता है. यह विटामिन A, कैल्शियम और पोटेशियम से भरपूर होता है. बथुए का उपयोग रायता, पराठा या सादा साग बनाने में किया जाता है. यह पेट को साफ रखने और कब्ज से राहत दिलाने में सहायक माना जाता है. इसका हल्का नमकीन स्वाद इसे खास बनाता है.

सरसों, पालक, सोया, चना और बथुआ मिलकर विटामिन, खनिज और अन्य पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं. इनका नियमित सेवन रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है, रक्तचाप को नियंत्रित करने में मदद करता है और पुरानी बीमारियों के खतरे को कम करता है.


