
भारतीय शेयर बाज़ार में फ़िलहाल स्थिरता दिखाई दे रही है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय ब्रोकरेज फर्म Nomura ने आने वाले समय को लेकर थोड़ी चिंता जताई है. उन्होंने मार्च 2026 तक के लिए Nifty का लक्ष्य घटाकर 24,970 कर दिया है. इसका मतलब ये हुआ कि मौजूदा स्तरों से बाज़ार में सिर्फ 3 फीसदी की मामूली बढ़त की उम्मीद की जा रही है.
Nomura ने क्या कहा?
Nomura का मानना है कि अमेरिका में संभावित ट्रंप टैरिफ, कमाई के अनुमान में गिरावट और वैश्विक मंदी की आशंका की वजह से ये कटौती की गई है. हालांकि, अगर रिस्क का माहौल स्थिर रहा, तो विदेशी निवेशकों की वापसी की उम्मीद जताई गई है, खासकर तब जब बीते छह महीनों में ज़बरदस्त बिकवाली देखने को मिली है.
Nomura ने अपने आकलन में यह भी जोड़ा है कि उन्होंने 18.5x के पुराने वैल्यूएशन मल्टीपल को बढ़ाकर 19.5x कर दिया है, ताकि बॉन्ड यील्ड में गिरावट को ध्यान में रखा जा सके. उन्होंने यह भी बताया कि इस दौरान घरेलू सेक्टर, जैसे कंज़्यूमर और फाइनेंशियल्स ने अच्छा प्रदर्शन किया है, जबकि आईटी, मेटल्स, ऑटो और फार्मा जैसे निर्यातक सेक्टर पिछड़ गए हैं.
टैरिफ का असर दिखेगा
Nomura का यह भी मानना है कि भारत अमेरिका के साथ संभावित व्यापार समझौते से लाभ कमा सकता है और सप्लाई चेन रिलोकेशन से फायदा उठाने की स्थिति में है. इसके अलावा, भारत की अर्थव्यवस्था फिलहाल स्थिर है और गिरते कमोडिटी व कच्चे तेल के दाम का अतिरिक्त फायदा भी मिल रहा है.
हालांकि, उन्होंने आगाह भी किया है कि अमेरिका के साथ व्यापारिक समझौता इतनी आसानी से नहीं होगा क्योंकि अमेरिका अब सिर्फ टैरिफ नहीं बल्कि स्ट्रक्चरल इश्यूज़ जैसे नॉन-टैरिफ बैरियर्स को भी हल करना चाहता है. इसी वजह से इन डील्स में देरी हो सकती है. इसके अलावा भले ही टैरिफ घटे, लेकिन फिर भी वह ऊंचे स्तर पर रहेंगे और बाज़ार में अनिश्चितता बनाए रखेंगे.
GDP ग्रोथ 5.8 फीसदी रहने का अनुमान
Nomura का कहना है कि मौजूदा कमाई के अनुमानों में भी गिरावट का जोखिम है, क्योंकि FY26 के लिए भारत की जीडीपी ग्रोथ 5.8 फीसदी रहने का अनुमान है, जो कि मौजूदा अपेक्षाओं से कम है. ऐसे में कंपनियों की कमाई की रफ्तार भी उतनी तेज़ नहीं रह सकती.
आख़िर में Nomura ने यह भी जोड़ा कि निकट भविष्य में इक्विटी वैल्यूएशन को बॉन्ड यील्ड्स में गिरावट से थोड़ा समर्थन मिल सकता है, बशर्ते रिस्क प्रीमियम में कोई उछाल न आए. उनके मुताबिक, अब तक जो ग्लोबल इक्विटी मार्केट में करेक्शन देखने को मिला है, वो ज़्यादा नहीं है और टैरिफ या ट्रेड वॉर की सबसे बड़ी सुर्खियां अब शायद पीछे छूट चुकी हैं.
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