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कभी गुस्से के कारण चेहरा लाल हुआ है? क्या खुशी के मारे गूजबंप्स महसूस किए हैं? क्या डर के मारे हथेलियों में पसीना आया है? जानते हैं ये सब क्यों होता है। यह होता है, एमिग्डला हाइजैक के कारण।
हमारे दिमाग के बीचों बीच एमिग्डला होता है। ये हमारे इमोशंस को कंट्रोल करते हैं। जब कोई इमोशन हमारे कंट्रोल से बाहर चला जाता है तो हम लॉजिकल फैसले नहीं ले पाते हैं। इसे ही एमिग्डला हाइजैक कहते हैं।
आमतौर पर ऐसी कंडीशन बहुत खुशी, बहुत दुख या बहुत गुस्से के कारण बनती है। जिंदगी के किसी-न-किसी मोड़ पर लोग एमिग्डला हाइजैक का सामना करते हैं।
इसलिए ‘फिजिकल हेल्थ’ में आज एमिग्डला हाइजैक की बात करेंगे। साथ ही जानेंगे कि-
- एमिग्डला क्या है?
- एमिग्डला हाइजैक के क्या लक्षण हैं?
- इससे बचने के क्या उपाय हैं?
एमिग्डला क्या है?
दिमाग के बिल्कुल अंदर दो छोटे, बादाम जैसे हिस्से होते हैं जिन्हें एमिग्डला कहते हैं।

एमिग्डला का काम क्या है?
एमिग्डला दिमाग के उस सिस्टम का हिस्सा होते हैं, जो हमारे भावनात्मक और व्यवहारिक प्रतिक्रियाओं को कंट्रोल करते हैं। अगर हमें किसी चीज से खतरा है तो डर का एहसास यही करवाता है। इसके सभी काम ग्राफिक में देखिए-

एमिग्डला हाइजैक क्या होता है?
डॉ. प्रशांत गोयल कहते हैं कि जब कोई कंडीशन हमारे लिए भावनात्मक रूप से भारी या तनावपूर्ण हो जाती है- जैसे अचानक डर, गुस्सा, अपमान या खतरे का एहसास होने पर एमिग्डला हमारी मर्जी के बिना एक्टिव हो जाता है। इस प्रक्रिया में दिमाग का फ्रंटल लोब यानी जो हिस्सा सोचने-समझने के लिए, निर्णय लेने और तर्क के लिए काम करता है, वह डिसेबल हो जाता है।
इसके कारण हमारे शरीर में एडरेनिल और कॉर्टिसोल जैसे हॉर्मोन रिलीज होते हैं।
इसका नतीजा ये होता है कि हमारी प्रतिक्रिया तुरंत तीखी और असंतुलित हो जाती है, जैसे लोग चीखने, रोने या भागने लगते हैं। कई बार गुस्से से बेकाबू हो जाते हैं।
‘इमोशनल इंटेलिजेंस’ नाम की मशहूर किताब लिखने वाले डेनियल गोलमैन ने पहली बार 1995 में इस प्रतिक्रिया को ‘एमिग्डला हाइजैक’ कहा था।
एमिग्डला हाइजैक के क्या लक्षण होते हैं?
जब दिमाग में एमिग्डला हाइजैक का इमरजेंसी अलार्म बजता है तो शरीर में कुछ खास बदलाव दिखते हैं, ग्राफिक में देखिए-

एमिग्डला हाइजैक का क्या असर होता है?
डॉ. प्रशांत गोयल कहते हैं कि एमिग्डला हाइजैक के दौरान हमारी प्रतिक्रिया अकसर तुरंत, अतार्किक और भावनात्मक होती है। जब घटना बीत जाती है तो अक्सर शर्मिंदगी, पछतावा और अपराधबोध महसूस होता है।
एमिग्डला हाइजैक को कैसे रोकें या कंट्रोल करें?
अब सवाल ये है कि क्या इसे रोका जा सकता है?- डॉ. प्रशांत गोयल कहते हैं कि इसका जवाब हां है, लेकिन इसके लिए थोड़ी प्रैक्टिस चाहिए। इसके लिए ये कर सकते हैं-
1. माइंडफुलनेस
खुद की भावनाओं को पहचानिए। जब आपको लगे कि कुछ ‘ज्यादा’ हो रहा है- गुस्सा, डर या बेचैनी- तो रुकिए और महसूस कीजिए कि शरीर में क्या हो रहा है। सांसें कैसी हैं? धड़कन कितनी तेज हैं?
2. धीमी और गहरी सांस लें
- 4 सेकेंड में सांस लें।
- 4 सेकेंड तक रोकें।
- 6 सेकेंड में धीरे-धीरे छोड़ें।
- इससे दिमाग को मैसेज मिलता है कि सब ठीक है और फ्रंटल कॉर्टेक्स फिर से एक्टिव होता है।
3. ट्रिगर को पहचानना सीखिए
कई बार हमें पता होता है कि क्या चीज हमें ट्रिगर करती है- जैसे आलोचना, अपमान, असफलता या अनिश्चितता। जब आप इन्हें पहचानने लगते हैं तो अगली बार आप तैयारी के साथ प्रतिक्रिया दे सकते हैं।
4. रीजनिंग
घटना के बाद बैठकर सोचिए- क्या डर वाजिब था? और क्या मेरी प्रतिक्रिया उस डर के लायक थी? इससे दिमाग का ‘तार्किक हिस्सा’ मजबूत होता है।
एमिग्डला हाइजैक से जुड़े कुछ कॉमन सवाल और जवाब
सवाल: क्या एमिग्डला हाइजैक सिर्फ गुस्से में होता है?
जवाब: नहीं, एमिग्डला हाइजैक सिर्फ गुस्से की स्थिति में नहीं होता, यह डर, शर्म, अपमान, असुरक्षा, घबराहट या अत्यधिक तनाव जैसी किसी भी भावनात्मक उत्तेजना से हो सकता है। कभी-कभी छोटी सी बात भी बड़ा ट्रिगर बन जाती है, खासकर तब जब दिमाग पहले से तनावग्रस्त होता है।
सवाल: क्या यह कोई मानसिक बीमारी है?
जवाब: नहीं, एमिग्डला हाइजैक कोई मानसिक रोग नहीं है। यह एक स्वाभाविक न्यूरोलॉजिकल प्रतिक्रिया है जो हमारे दिमाग की सुरक्षा प्रणाली से जुड़ी होती है। हालांकि, अगर कोई व्यक्ति बार-बार ऐसी स्थितियों में फंसता है और उसकी प्रतिक्रियाएं बहुत असामान्य या खतरनाक होती हैं, तो यह संकेत हो सकता है कि उसे थेरेपी या काउंसलिंग की जरूरत है।
सवाल: क्या योग या मेडिटेशन से एमिग्डला हाइजैक को रोका जा सकता है?
जवाब: हां, यह बेहद असरदार तरीका है। नियमित योग, प्राणायाम और माइंडफुलनेस मेडिटेशन से शरीर और दिमाग दोनों शांत रहते हैं। इससे एमिग्डला की संवेदनशीलता घटती है और हमारे सोचने-समझने वाले हिस्से यानी फ्रंटल कॉर्टेक्स की सक्रियता बढ़ती है, जिससे हम अपनी भावनाओं को बेहतर नियंत्रित कर पाते हैं।
सवाल: क्या बच्चों में भी एमिग्डला हाइजैक होता है?
जवाब: हां, और बहुत अधिक होता है। बच्चों के फ्रंटल लोब्स पूरी तरह विकसित नहीं होते, इसलिए जब उन्हें डर या गुस्सा आता है तो वे अक्सर रोने, चीखने या जिद करने लगते हैं। यह भी एमिग्डला हाइजैक का ही हिस्सा है। यही कारण है कि बच्चों को समझाना, शांत करना और प्यार से प्रतिक्रिया देना जरूरी होता है।
सवाल: क्या एमिग्डला हाइजैक हमारी याददाश्त पर असर डालता है?
जवाब: हां, जब एमिग्डला एक्टिव होता है, तो दिमाग का बाकी हिस्सा, खासकर हिप्पोकैंपस (मेमोरी बनाने वाला हिस्सा), ठीक से काम नहीं करता है। यही कारण है कि ज्यादा भावनात्मक स्थितियों में हम बाद में भूल जाते हैं कि हमने उस वक्त क्या कहा या किया था। इससे रिश्तों और निर्णयों पर भी असर पड़ता है।
सवाल: क्या एमिग्डला हाइजैक के समय लिए गए फैसले भरोसेमंद होते हैं?
जवाब: अक्सर नहीं, जब दिमाग इमरजेंसी मोड में होता है, तो सोचने की प्रक्रिया बंद हो जाती है और प्रतिक्रिया सिर्फ भावनाओं के आधार पर होती है, तर्क के आधार पर नहीं होती है। इसलिए उस समय लिया गया फैसला ज्यादातर जल्दबाजी वाला और असंतुलित होता है।
सवाल: क्या ज्यादा स्क्रीन टाइम और सोशल मीडिया एमिग्डला हाइजैक को बढ़ा सकता है?
जवाब: हां, ज्यादा स्क्रीन टाइम, खासकर सोशल मीडिया पर निगेटिव खबरें, ट्रोलिंग या तुलना करने वाली पोस्ट्स, दिमाग को लगातार इमोशनल हाइपर एराउजल की कंडीशन में रखती हैं। इससे एमिग्डला ज्यादा एक्टिव रहने लगता है और छोटी-छोटी बातें भी बड़े ट्रिगर बन जाती हैं।
सवाल: क्या इससे बचने के लिए दवाएं भी ली जाती हैं?
जवाब: जरूरत पड़ने पर, लेनी पड़ती हैं। अगर कोई व्यक्ति बार-बार इमोशनली हाइजैक हो रहा है, और उसे एंग्जायटी, डिप्रेशन या पैनिक अटैक्स होने लगे हैं, तो डॉक्टर एंटी-एंग्जायटी या मूड स्टेबल करने वाली दवाएं दे सकते हैं। आमतौर पर कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (CBT) और माइंडफुलनेस ज्यादा प्रभावी साबित होते हैं।
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