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जरा सोचिए आप 9 बजे काम के लिए निकले और लौटने का कोई समय न हो। काम की जगह पर न तो बाथरूम जाने की इजाजत हो और न ही ब्रेक्स के दौरान बैठने की। कई जगह पानी पीने की इजाजत भी न मिल सके।
बात किसी दूसरी दुनिया की नहीं बल्कि भारत के केरल की सेल्सविमेन के हाल की है। वर्कप्लेस पर जब कभी ये महिलाएं ब्रेक के दौरान भी बैठी हुई मिलती तो उनकी सैलरी काट ली जाती। जब इन महिलाओं ने मालिकों से बाथरूम जाने की परमिशन मांगी तो उन्हें पानी कम पीने की हिदायत मिली। पूरे दिन टॉर्चर सहने के बाद पैर में दर्द-सूजन लेकर घर जाने वाली इन महिलाओं का जीवन रिटायर होने के बाद भी सुधरा नहीं। नौकरी छोड़ने के बाद सरकारी अस्पतालों में पैरों के इलाज के लिए इन्हें लंबी लाइनों में खड़ा होना पड़ा। बाथरूम न जाने की वजह से ये दिनभर पानी नहीं पीती थी। इसकी वजह से बुढ़ापे में इन महिलाओं को यूटरस और किडनी से संबंधित बीमारियां होने लगीं।

न कुर्सी, न बाथरूम जा पाने का सम्मान
बात केरल के कोझिकोड़ की SM स्ट्रीट की है। 1957 में यानी स्वतंत्रता के 10 साल बाद केरल में कम्यूनिस्ट सरकार बनी। ये सरकार क्रांतिकारी लैंड रिफॉर्म, एजुकेशन पॉलीसी और पब्लिक हेल्थ पॉलीसिज लेकर आई।
अलग-अलग सेक्टर्स के लिए लेबर-फ्रेंडली पॉलीसिज भी बनाई गईं। लेकिन महिलाओं की बात इस सरकार के लिए भी जरूरी नहीं थी। वर्कप्लेस पर महिलाओं और पुरुषों के साथ समान व्यवहार, महिलाओं के लिए बराबर वेतन जैसी चीजें कम्यूनिस्ट सरकार के लिए किसी काम की नहीं थी। ऐसे में महिलाओं के साथ वर्कप्लेस पर भेदभाव होता रहा।
इसके खिलाफ विजी पालीथोड़ी ने 18 साल लंबी लड़ाई लड़ी। कोर्ट गईं, महिलाओं को इकट्ठा किया और उनकी ट्रेड यूनियन बनाईं। आज लेबर्स डे के मौके पर जानते हैं उनकी कहानी। जानते हैं वो कहानी जो कहती है कि हक मिलता नहीं है, जीता जाता है।
टेलर विजी पालीथोड़ी ने लड़ी लड़ाई
16 साल की उम्र में विजी पालीथोड़ी ने कोझिकोड़ के SM मार्केट में एक टेलर की दुकान में काम करना शुरू किया। काम करते हुए विजी को भी सेल्सवुमन वाली दिक्कतों का सामना करना पड़ा। काम न होते हुए भी व्यस्त दिखने का प्रेशर, बाथरूम जाने की और बैठने की आजादी न मिलना- इन सभी परेशानियों को जब विजी ने खुद झेला तो उन्हें सेल्सविमेन की परेशानियों का एहसास हुआ।
इसके बाद साल 2000 में विजी ने कोझिकोड़ के मार्केट में महिलाओं की मीटिंग्स बुलाना शुरू किया। यहां महिलाएं अपनी सैलरी कंपेयर करती और खराब वर्किंग कंडीशन्स एक-दूसरे के साथ साझा करने लगीं। महिलाएं एक दूसरे को बताती कि किस तरह दुकान में कोई भी कस्टमर न होने पर भी अगर वो बैठी पाई जाती तो उनकी सैलरी से पैसा काटा जाता था।
9 साल तक विजी ने सम्मान के लिए संघर्ष किया
विजी ने महिला वर्कर्स की मीटिंग्स में पाया कि एक बड़े स्तर पर महिलाओं को भेदभाव सहना पड़ रहा है। इसलिए विजी ने ‘पेनकूट्टू’ का गठन किया। इसका मतलब है ‘महिलाएं- जो एक दूसरे के लिए खड़ी रहती हैं।’ धीरे-धीरे कोझिकोड़ से निकलकर ये केरल के दूसरे जिलों तक भी पहुंचा।
5 साल तक महिलाओं के लिए पेनकूट्टू के जरिए विजी ने आवाज उठाई। लेकिन उन्हें एहसास हुआ कि महिलाओं का कोई ट्रेड यूनियन नहीं है जिसकी वजह से उनकी मांगों और जरूरतों को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा था। तब विजी ने AMTU नाम से एक ट्रेड यूनियन बनाई।

2018 में सरकार ने महिलाओं को दिया बैठने का हक
AMTU, पेनकूट्टू और विजी के प्रयासों के बाद केरल की ज्यादातर दुकानों में महिलाओं को बैठने का और बाथरूम इस्तेमाल करने का हक दे दिया गया। लेकिन इसपर सरकार की मुहर लगना अभी भी बाकी था। इसके बाद करीब 10 साल कोर्ट में केस लड़ने के बाद 2018 में शॉप्स एंड कमर्शियल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट (1960) में बदलाव किए गए। एक्ट में दुकानों में टॉयलेट और बैठने की सुविधा को जरूरी किया गया।

बराबर वेतन के लिए है आगे की लड़ाई
महिलाओं को बैठने का और बाथरूम जाने का हक दिलाने के बाद विजी पी. अब उन्हें बराबर वेतन दिलाने के लिए लड़ाई लड़ रही हैं। वो कहती हैं, ‘असंगठित क्षेत्रों में वेतन काम के आधार पर तय किया जाता है। यहां काफी शोषण होता है। पुरुष कर्माचारियों को मुख्यधारा से जोड़कर देखा जाता है। उनके लिए बोलने के लिए हजारों लोग हैं। पुरुषों के एकाधिकार पर सवाल खड़े किए जाने चाहिए।’
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