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वेस्टर्न डिस्टर्बेंस का पैटर्न बदलने से मौसम पर सबसे ज्यादा असर होने लगा है। हिमालय पर जनवरी-फरवरी में होने वाली बर्फबारी मार्च-अप्रैल में होने लगी है। दो साल से सबसे ज्यादा स्नोकवर मार्च में हो रहा है। इससे हीटवेव के दौर घट रहे हैं। यह जानकारी जलवायु परिवर्तन पर अध्ययन करने वाली संस्था क्लाइमेट ट्रेंड ने दी है।
सर्दियों में पश्चिम से आने वाले तूफानों को पश्चिमी विक्षोभ करते हैं। कुछ साल पहले तक नवंबर से फरवरी के बीच सबसे ज्यादा विक्षोभ आते थे। लेकिन, 4-5 साल में इनकी सक्रियता जनवरी-फरवरी में कम होकर मार्च-अप्रैल में बढ़ गई।
ग्लोबल वार्मिंग से जहां पश्चिमी और उत्तर-पश्चिमी भारत में मार्च से हीटवेव चल रही है, तो पश्चिमी विक्षोभ तापमान गिराकर हीटवेव के दौर में ब्रेक ला रहे हैं।
IMD महानिदेशक डॉ. मृत्युंजय महापात्र का कहना है कि यह जलवायु परिवर्तन की शुरुआत हो सकती है। लेकिन, मौसम में कोई भी घटना दो से तीन दशक तक लगातार एक जैसी ही न हो, तब तक उसे एक घटना ही मानना चाहिए।
समझें- कैसे घटते जा रहे पश्चिमी विक्षोभ
- 2023 के जनवरी-फरवरी में 12 पश्चिमी विक्षोभ आए। इनमें जनवरी में 4 सक्रिय थे। इनसे पहाड़ों पर बर्फबारी, मैदानों में बारिश हुई। मार्च-अप्रैल में आए सभी 12 सक्रिय थे।
- 2024 के जनवरी-फरवरी में 12 आए, 7 ही सक्रिय थे। मार्च-अप्रैल में 12 में से 10 सक्रिय थे।
- 2025 के जनवरी-फरवरी में 14 विक्षोभ आए, इनमें 2 ही सक्रिय थे। मार्च-अप्रैल में सभी 8 सक्रिय रहे।
- इसरो के भुवन प्लेटफार्म का डेटा बताता है कि मार्च-अप्रैल में आए सक्रिय पश्चिमी विक्षोभों से हिमालय के सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी बेसिन में तीन साल से मार्च में ही सर्वाधिक स्नोकवर रहा। तीन साल से यही पैटर्न है।
- 2025 में मार्च के पहले हफ्ते में सिंधु बेसिन में 2.02 लाख वर्ग किमी, गंगा बेसिन में करीब 53 हजार वर्ग किमी, ब्रह्मपुत्र बेसिन में करीब एक लाख वर्ग किमी क्षेत्र बर्फ से ढंका था।
भविष्य में मानसून भी आगे खिसकने की संभावना
पश्चिमी विक्षोभ विशेषज्ञ प्रो. एपी डिमरी का कहना है कि पश्चिमी विक्षोभ तो पूरे साल ही आते हैं, लेकिन सर्दियों में उनका रास्ता हिमालय के दक्षिण से होकर रहता है, इसलिए सक्रिय विक्षोभों का असर यहां दिखाई देता था और गर्मियों में पश्चिमी विक्षोभ सामान्य रूप से हिमालय के उत्तर से गुजरते थे और उनका असर नहीं पड़ता था। अब उसके रास्ते का दायरा बढ़ गया है। वे मध्य भारत तक सक्रिय रहते हैं और अरब सागर से उन्हें नमी मिलती है।
पहाड़ों से लेकर मध्य भारत तक तेज आंधी व गरज-चमक के साथ बारिश हो रही है। प. विक्षोभों की सक्रियता घटने से ही इस साल मार्च-अप्रैल में बर्फबारी हुई। इससे भविष्य में मानसून भी आगे खिसक सकता है।