
Hyderabad: रमजाम खत्म हुए काफी समय बीत गया है लेकिन इस पाक महीने में खासतौर पर मिलने वाला मीठा हलीम का स्वाद लोग अभी तक नहीं भुला पाए हैं.

मीठी हलीम हैदराबाद
- हैदराबाद में मीठी हलीम रमजान के बाद भी लोकप्रिय है.
- मीठी हलीम में देसी घी और चीनी मिलाई जाती है.
- बरकस में मीठी हलीम पारंपरिक यमनी डिश से बनी है.
हैदराबाद: शहर के कुछ ऐसे पकवान हैं जो पूरी दुनिया में मशहूर हैं, उनमें हलीम का नाम भी शामिल है. आप सभी ने हलीम ज़रूर खाया होगा, लेकिन क्या आपने मीठी हलीम खाई है? चौंक गए न? रमज़ान खत्म हुए एक महीने से ज़्यादा हो गया है, लेकिन हैदराबाद में हलीम के दीवाने अभी भी इस स्वादिष्ट हलीम को खाने के लिए बेताब हैं. मीठी हलीम की एक अलग दुनिया है, एक ऐसा खाना जिसे बरकस में पीढ़ियों से संभाला जाता रहा है और यह साबित करता है कि कुछ खाने की परंपराएं इतनी खास होती हैं कि उन्हें साल के सिर्फ़ एक महीने तक सीमित नहीं रखा जा सकता.
मीठी हलीम को क्या खास बनाता है?
मीठी हरीस या मीठी हलीम के नाम से मशहूर यह डिश सदियों पुरानी अरब परंपरा से जुड़ी है. पिसे हुए गेहूं के साथ बिना हड्डी वाला मांस धीमी आंच पर पकाया जाता है. यह खाना दलिया जैसी मोटी बनावट वाला होता है. इसे अलग बनाने वाली बात यह है कि इसमें देसी घी और कुछ चम्मच चीनी मिलाई जाती है, जिससे यह थोड़ा मीठा हो जाता है. यह स्वाद पहली बार खाने वालों को हैरान करता है, लेकिन पुराने खाने वाले इसे बार-बार खाना चाहते हैं.
इसे आमतौर पर सुबह के नाश्ते में खाया जाता है, खासकर सर्दियों में, जब इसकी गर्माहट और स्वाद सबसे ज़्यादा पसंद किया जाता है. ऊपर से थोड़ा और घी डालकर इसे गरमागरम परोसा जाता है. मीठी हरीस सुबह 9 से 10 बजे तक खा लेना सबसे अच्छा होता है, क्योंकि उसके बाद ज़्यादातर दुकानें बंद हो जाती हैं. इसे बरकस बाज़ार में छोटी-छोटी खाने की दुकानों से खरीदा जा सकता है.
मीठी हलीम का इतिहास
मीठी हलीम खास तौर पर बरकस में मिलने वाली हलीम मानी जाती है, जो पारंपरिक यमनी डिश ‘असीद’ से बनी हुई है. असीद एक ऐसा खाना है जिसमें गेहूं के आटे को पानी के साथ मिलाकर आटा तैयार किया जाता है, फिर उसे मांस के साथ पकाया जाता है और कभी-कभी शहद या खजूर से मीठा किया जाता है. जब यमन के सैनिक निज़ामों द्वारा हैदराबाद लाए गए, तो वे बरकस इलाके में बस गए. वे अपने साथ अपना खाना बनाने का तरीका भी लाए, जिसमें असीद भी शामिल था. समय के साथ यह डिश स्थानीय स्वाद और चीज़ों के अनुसार बदल गई, जिससे मीठी हलीम तैयार हुई.