
मारुति सुजुकी इंडिया इस साल सितंबर में अपना पहला इलेक्ट्रिक मॉडल ई-विटारा उतारने की की योजना बना रही है। इसके साथ ही मारुति की ईवी मार्केट में एंट्री हो जाएगी। मारुति की इलेक्ट्रिक गाड़ियों की दुनिया में तहलका मचाने की तैयारी है। इसके लिए कंपनी अपनी असेंबली लाइन में बड़ा बदलाव करने जा रही है। कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि मारुति अपनी उत्पादन क्षमताओं को लचीला बना रही है। इसके पीछे उद्देश्य एक ही मैन्युफैक्चरिंग प्लांट से इलेक्ट्रिक वाहन सहित अधिक मॉडल का उत्पादन करना है।
2031 तक 28 मॉडल मार्केट में होंगे
देश की सबसे बड़ी कार विनिर्माता कंपनी मारुति ने 2030-31 तक बाजार में लगभग 28 विभिन्न मॉडल के साथ 20 लाख इकाई की उत्पादन क्षमता और जोड़ने का लक्ष्य रखा है। फिलहाल हरियाणा और गुजरात के अपने विनिर्माण संयंत्रों के साथ कंपनी की कुल उत्पादन क्षमता सालाना 26 लाख इकाई की है। हरियाणा में गुरुग्राम और मानेसर में दो संयंत्र सालाना लगभग 16 लाख इकाई का उत्पादन करते हैं। खरखौदा में नए संयंत्र ने भी उत्पादन शुरू कर दिया है। शुरुआत में, नई सुविधा की वार्षिक उत्पादन क्षमता 2.5 लाख इकाई की होगी और यह कॉम्पैक्ट एसयूवी ब्रेजा का विनिर्माण करेगी। कंपनी की एक इकाई सुजुकी मोटर गुजरात ने भी गुजरात में एक सुविधा स्थापित की है, जिसकी स्थापित उत्पादन क्षमता प्रति सालाना 7.5 लाख इकाई की है।
ईवी वाहन का वजन अधिक होगा
मारुति सुजुकी इंडिया के वरिष्ठ कार्यकारी अधिकारी (कॉरपोरेट मामले) राहुल भारती ने कहा कि हम अपने संयंत्रों को अधिक लचीला बना रहे हैं, ताकि अधिक लाइन अधिक मॉडल का उत्पादन कर सकें। और हम यह भी ध्यान रख रहे हैं कि स्थापित की गई नई लाइन इलेक्ट्रिक वाहन का भी विनिर्माण कर सकें। भारती ने कहा कि बैटरी के वजन की वजह से ईवी पारंपरिक मॉडल की तुलना में कहीं अधिक भारी वाहन हैं। उन्होंने कहा कि इसलिए, उस हिसाब से उत्पादन लाइन में कुछ अंतर है। लेकिन हम इसे लचीला बना रहे हैं, चाहे वह गुजरात में हो या खरखौदा (हरियाणा) में।
ईवी गाड़ियों से कम होगा मुनाफा
ईवी से मुनाफे के बारे में एक सवाल पर, उन्होंने कहा कि कंपनी इस बात से अवगत है कि डिजाइन के अनुसार ईवी की लाभप्रदता बहुत कम होगी और यह पूरे उद्योग के लिए सच है। भारती ने कहा कि हम ईवी से आईसी (परंपरागत) इंजन के समान लाभप्रदता की उम्मीद नहीं कर सकते। और अगर ऐसा होता, तो सरकार को शायद पांच प्रतिशत माल एवं सेवा कर (जीएसटी) या इतनी सारी योजनाएं या इतनी सारी समर्थन वाली नीतियां बनाने की जरूरत नहीं होती। इसलिए, हमें इसके बारे में सचेत रहना होगा।