

टिम फ्रीडे को सांपों से कटवाने का शौक है।
न्यूयॉर्क: अमेरिका में टिम फ्रीडे नाम के शख्स को सांपों ने सैकड़ों बार काटा है और ज्यादातर बार उन्होंने यह काम जानबूझकर करवाया है। अब वैज्ञानिक उनके खून की जांच कर रहे हैं ताकि सांप के काटने का बेहतर इलाज ढूंढा जा सके। फ्रीडे को सांपों और जहरीले जीवों से बचपन से लगाव था। वह अपने विस्कॉन्सिन घर में दर्जनों सांप रखते थे और बिच्छुओं-मकड़ियों का जहर निकालते थे। सांपों के काटने से बचने और जिज्ञासा के चलते उन्होंने खुद को सांपों के जहर की छोटी खुराक देनी शुरू की। धीरे-धीरे खुराक बढ़ाकर उन्होंने शरीर में जहर सहने की ताकत बनाई और फिर सांपों से कटवाना शुरू किया।
‘पहले बहुत डर लगता था, लेकिन…’
फ्रीडे कहते हैं, ‘पहले बहुत डर लगता था, लेकिन जितना करते गए, उतना आसान होता गया।’ कोई डॉक्टर या एक्सपर्ट इसे सही नहीं मानता, लेकिन उनका कहना है कि यह तरीका शरीर के काम करने के ढंग से मेल खाता है। जब शरीर को जहर का छोटा हिस्सा मिलता है, तो इम्यून सिस्टम एंटीबॉडीज बनाता है जो जहर को बेअसर कर देता है। जिस जहर का अनुभव शरीर को पहले से होता है, वह उसे आसानी से संभाल लेता है। फ्रीडे 18 साल से सांपों के जहर की खुराक ले रहे हैं, और उनके फ्रीज में जहर भरा रहता है। यूट्यूब वीडियो में उनके ब्लैक माम्बा, ताइपन और वॉटर कोबरा के काटने से सूजे हाथ नजर आते हैं।
वैज्ञानिक अब फ्रीडे के खून पर रिसर्च कर रहे हैं।
‘मैं मौत को छूकर वापस आना चाहता था’
टिम फ्रीडे कहते हैं, ‘मैं मौत को छूकर वापस आना चाहता था।’ फ्रीडे ने वैज्ञानिकों को ईमेल भेजकर अपने खून की जांच की गुहार लगाई। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, हर साल 1,10,000 लोग सांप के काटने से मरते हैं। एंटीवेनम बनाना महंगा और मुश्किल है। इसे घोड़ों जैसे बड़े जानवरों को जहर देकर बनाया जाता है, जो सिर्फ कुछ सांपों के जहर पर काम करता है और कभी-कभी नुकसान भी पहुंचाता है। कोलंबिया यूनिवर्सिटी के पीटर क्वॉन्ग ने फ्रीडे के बारे में सुना तो हैरान हुए। उन्होंने कहा, ‘यह असाधारण है। 18 साल में फ्रीडे ने अनोखी एंटीबॉडीज बनाईं हैं।’
टिम फ्रीडे के खून से 2 एंटीबॉडीज मिलीं
शुक्रवार को ‘सेल’ जर्नल में छपे शोध में क्वॉन्ग और उनकी टीम ने बताया कि फ्रीडे के खून से 2 एंटीबॉडीज मिलीं, जो कई सांपों के जहर को बेअसर करती हैं। इसका लक्ष्य एक ऐसा इलाज बनाना है जो कई सांपों के जहर पर काम करे। यह शोध शुरुआती है। चूहों पर टेस्ट हुआ है, लेकिन इंसानों पर परीक्षण में सालों लगेंगे। यह इलाज माम्बा और कोबरा जैसे सांपों पर काम करता है, लेकिन वाइपर (जैसे रैटलस्नेक) पर नहीं। लिवरपूल स्कूल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन के निकोलस केसवेल ने कहा, ‘यह आशाजनक है, लेकिन अभी बहुत काम बाकी है।’
उंगली का हिस्सा तक काटना पड़ा
फ्रीडे की राह आसान नहीं थी। एक बार सांप ने उन्हें इस तरह काटा कि उन्हें अपनी उंगली का एक हिस्सा गंवाना पड़ा। कोबरा के काटने ने उन्हें अस्पताल पहुंचाया। अब वे सेंटिवैक्स कंपनी में काम करते हैं, जो इस इलाज को विकसित कर रही है और शोध के लिए फंड दे रही है। फ्रीडे खुश हैं कि उनका 18 साल का सफर लोगों की जान बचा सकता है, लेकिन वह साथ ही दूसरों को सलाह देते हैं, ‘ऐसा मत करना।’ (AP)