
Health Tips: उत्तराखंड में बागेश्रर के जंगलों में उगने वाला पत्थरचट्टा पौधा पथरी के इलाज में रामबाण है. इसके हरे पत्तों का पेस्ट पीने से पथरी में फायदेमंद है. एक महीने तक इसका सेवन करने पर पथरी के आकार में कमी …और पढ़ें

पत्थर चट्टा के पत्ते
- पत्थरचट्टा पथरी के इलाज में रामबाण है.
- हरे पत्तों का पेस्ट पीने से पथरी में फायदा.
- दिन में दो बार सेवन से पथरी में कमी.
बागेश्वर: उत्तराखंड की पावन भूमि न केवल प्राकृतिक सुंदरता और शांत वातावरण के लिए जानी जाती है, बल्कि यहां की जैव विविधता भी अनगिनत औषधीय गुणों से भरपूर है. यहां के जंगलों और पर्वतीय क्षेत्रों में पाए जाने वाले पारंपरिक औषधीय पौधे आज भी ग्रामीणों के घरेलू उपचार का आधार बने हुए हैं. ऐसा ही एक विशेष पौधा पत्थरचट्टा है. जो पथरी जैसी गंभीर बीमारी को दूर करने में रामबाण माना जाता है.
हिमालय की तलहटी में उगता है पौधा
बागेश्वर के स्थानीय जानकार किशन मलड़ा ने लोकल 18 को बताया कि पत्थरचट्टा नामक यह पौधा बागेश्वर और उसके आसपास के ऊंचाई वाले क्षेत्रों, बुग्यालों और हिमालय की तलहटी में स्वतः उगता है. इसका नाम भी इसी कारण पड़ा. क्योंकि यह पौधा जमीन में नहीं, बल्कि चट्टानों और पथरीली जगहों पर उगता है. स्थानीय लोग इसे जड़ी-बूटी के रूप में इकट्ठा कर बाजारों में बेचते हैं. जबकि पारंपरिक ज्ञान रखने वाले लोग स्वयं ही इसे उपयोग में लाते हैं.
हरे पत्तों का पेस्ट बनाकर पीते हैं लोग
पथरी से पीड़ित व्यक्तियों के लिए पत्थरचट्टा अत्यंत लाभकारी माना गया है. इसके उपयोग का तरीका भी बेहद आसान है. इसके हरे पत्तों का पेस्ट बनाकर उसे एक गिलास पानी में घोलकर सुबह और शाम दिन में दो बार पीने की सलाह दी जाती है. नियमित रूप से 15 दिन से लेकर एक महीने तक इसका सेवन करने पर पथरी के आकार में कमी देखी जा सकती है. कई स्थानीय लोगों ने इसके सकारात्मक परिणाम अनुभव किए हैं और अब इसे वैकल्पिक चिकित्सा का एक अहम हिस्सा मानने लगे हैं.
आयुर्वेद विशेषज्ञों का मानना है कि पत्थरचट्टा में मूत्रवर्धक और सूजननाशक गुण होते हैं, जो शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालने में मदद करते हैं. यह न केवल किडनी की पथरी को तोड़ने में सहायक होता है, बल्कि शरीर के अन्य अंगों की कार्यक्षमता भी बढ़ाता है. हालांकि किसी भी औषधीय पौधे का उपयोग करने से पहले विशेषज्ञ की सलाह लेना आवश्यक होता है.
अब बाहरी राज्यों से भी लोग इस पौधे के बारे में पूछताछ करने लगे हैं, जिससे इसके व्यापारिक संभावनाएं भी बढ़ी हैं. यदि सरकार और स्थानीय प्रशासन इस दिशा में ध्यान दें, तो पत्थरचट्टा जैसी जड़ी-बूटियों के माध्यम से पहाड़ी क्षेत्रों में स्वरोजगार के नए द्वार खोले जा सकते हैं. उत्तराखंड के प्राकृतिक खजाने में छिपे ऐसे औषधीय पौधे आज भी हमारी पारंपरिक चिकित्सा पद्धति की जीवंत मिसाल हैं, जिन्हें समझना और संरक्षित करना हम सभी की जिम्मेदारी है.