
करीब 30 साल पहले सिकंदरा निवासी जयराम सैनी से विवाह के बाद राजन्ती देवी का जीवन सामान्य चल रहा था. लेकिन शादी के पांच साल बाद ही पति की अचानक मृत्यु हो गई. उसके बाद की कहानी काफी दर्दभरी और प्रेरणादायक है.

महिला राजन्ती देवी
- राजन्ती देवी ने पति की मृत्यु के बाद बच्चों को मजदूरी कर पाला.
- राजन्ती देवी ने पत्थर तराशने का व्यवसाय शुरू किया और सफल हुईं.
- राजन्ती देवी का संदेश: महिलाएं खुद को कमजोर न समझें, हर मुसीबत का सामना करें.
दौसा:- “आधी आबादी का पूरा सच है कि महिला कोमल है, पर कमजोर नहीं”, इस वाक्य को सही साबित किया है गीजगढ़ निवासी राजन्ती देवी ने, जिन्होंने कठिन से कठिन हालातों में भी हार नहीं मानी और अपने हौसले की उड़ान से मिसाल कायम की. करीब 30 साल पहले सिकंदरा निवासी जयराम सैनी से विवाह के बाद राजन्ती देवी का जीवन सामान्य चल रहा था. लेकिन शादी के पांच साल बाद ही पति की अचानक मृत्यु हो गई.
चावल खिलाकर बच्चों को रखा जिंदा
इस दु:खद घटना के बाद उनके ससुराल पक्ष ने रात के 12 बजे दो छोटे बच्चों के साथ उन्हें घर से बाहर निकाल दिया. निराशा और पीड़ा के उस दौर में राजन्ती देवी ने सिकंदरा चौराहे पर बनी दुकानों की चद्दरों के नीचे तीन दिन तक अपने बच्चों के साथ गुजारे. उन्हें केवल चावल खिलाकर किसी तरह जिंदा रखा. जब ससुराल से कोई सहारा नहीं मिला, तो वह बच्चों को लेकर अपनी मौसी के पास गईं और फिर कुछ दिन बाद अपने मायके कुंडेरा डूंगर लौट आईं.
12 साल लगातार की मेहनत
पति के निधन के बाद जीवन संघर्षों से भर गया था. आर्थिक तंगी ने उन्हें दाने-दाने के लिए मोहताज कर दिया. लेकिन राजन्ती देवी ने हार मानने के बजाय खुद को मजबूत किया और बच्चों का भविष्य संवारने का प्रण लिया. उन्होंने सिकंदरा चौराहे पर पत्थर की स्टालों पर मजदूरी शुरू की, जहां उन्हें मात्र 50 रुपये प्रतिदिन की मजदूरी मिलती थी. 12 सालों तक लगातार कड़ी मेहनत कर उन्होंने अपने दोनों बेटे संतोष और मुकेश को पाला, पढ़ाया-लिखाया और उनकी शादियां करवाईं.
आज खुद के पैरों पर खड़ी हैं राजन्ती
इसके बाद राजन्ती देवी ने किराए की जमीन लेकर पत्थर तराशने की मशीन लगाई और स्वयं का व्यवसाय शुरू किया. हालांकि ससुराल पक्ष ने तब भी कई बाधाएं खड़ी कीं, लेकिन राजन्ती ने हिम्मत नहीं हारी और सभी मुश्किलों का डटकर सामना किया. आज राजन्ती देवी गीजगढ़ में अपने खुद के प्लॉट पर मकान बनाकर सुखद जीवन बिता रही हैं. वह न केवल मशीन चलाकर अपना व्यवसाय बढ़ा रही हैं, बल्कि राजस्थान के साथ अन्य राज्यों में भी पत्थर व्यापार कर रही हैं.
बिजनेस को पढ़े-लिखे बेटे बढ़ा रहे आगे
अनपढ़ होने के बावजूद उन्होंने व्यापार का हिसाब-किताब खुद संभाला और अब उनके पढ़े-लिखे बेटे इस व्यापार को आगे बढ़ा रहे हैं. राजन्ती देवी का कहना है, “मेरे जीवन में दुखों का पहाड़ टूटा, लेकिन मैंने कभी हार नहीं मानी. मैं सभी महिलाओं से कहना चाहती हूं कि खुद को कभी कमजोर न समझें. जीवन में जो भी मुसीबत आए, उसका साहस के साथ मुकाबला करें. आज महिलाएं भी पुरुषों के बराबर हर क्षेत्र में आगे बढ़ सकती हैं.