
- Hindi News
- Jeevan mantra
- Dharm
- The Story Of Amavasya Is Associated With An Pitar Dev Named Amavasu, Satuwai Amawasya Significance In Hindi, Dhoop Dhyan On Satuwai Amawasya
- कॉपी लिंक

हिन्दी पंचांग के अनुसार, एक महीने में दो पक्ष होते हैं — कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। कृष्ण पक्ष की पंद्रहवीं तिथि को अमावस्या कहा जाता है। आज (27 अप्रैल) वैशाख अमावस्या (सतुवाई) है। अमावस्या तिथि पर पितरों के लिए धूप-ध्यान और दान-पुण्य करने का महत्व है। इस दिन जरूरतमंदों को अनाज, कपड़े, जूते-चप्पल, छाता, खाना और धन का दान करना बहुत शुभ माना जाता है। आज सत्तु का दान करने की परंपरा है।
अमावस्या से जुड़ी पौराणिक कथा
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार, शास्त्रों में अमावस्या से जुड़ी एक कथा है। कहा जाता है कि प्राचीन समय में एक कन्या ने पितरों को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की थी। उसकी तपस्या से पितर देवता प्रसन्न होकर प्रकट हुए। उस दिन कृष्ण पक्ष की पंद्रहवीं तिथि थी।
पितरों में से एक सुंदर और आकर्षक पितर का नाम अमावसु था। जब कन्या ने अमावसु को देखा तो वह उन पर मोहित हो गई और वरदान स्वरूप उनसे विवाह करने की इच्छा व्यक्त की। हालांकि, अमावसु ने विवाह करने से इंकार कर दिया। कन्या ने उन्हें मनाने का प्रयास किया, लेकिन अमावसु अपने निर्णय पर अडिग रहे।
अमावसु के इस संयम से अन्य सभी पितर अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने अमावसु को आशीर्वाद दिया कि भविष्य में कृष्ण पक्ष की पंद्रहवीं तिथि अमावसु के नाम पर अमावस्या कहलाएगी। तभी से हर माह की इस तिथि को अमावस्या कहा जाने लगा।
चंद्रमा की सोलहवीं कला है अमा
शास्त्रों में चंद्रमा की सोलह कलाओं का जिक्र है। इन कलाओं में सोलहवीं कला को ‘अमा’ कहा गया है। अमावस्या के दिन सूर्य और चंद्रमा दोनों एक ही राशि में स्थित होते हैं। एक श्लोक के अनुसार:
“अमा षोडशभागेन देवि प्रोक्ता महाकला।
संस्थिता परमा माया देहिनां देहधारिणी।।”
अर्थात, अमा चंद्रमा की महाकला है, जिसमें चंद्र की सभी कलाओं की शक्तियां समाहित होती हैं। इस कला का न तो क्षय होता है और न उदय, अतः यह शाश्वत मानी जाती है।
अमावस्या के दिन कौन-कौन से शुभ काम करें
- अमावस्या तिथि के स्वामी पितृदेव माने गए हैं। इसलिए इस दिन पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण, श्राद्ध, धूप-दीप प्रज्वलन और दान-पुण्य करना अत्यंत फलदायी माना गया है। पुरानी परंपराओं के अनुसार इस दिन पवित्र नदियों में स्नान, मंत्र जाप, व्रत और तपस्या का विशेष महत्व है। पितरों के लिए धूप-ध्यान दोपहर में करीब 12 बजे करना चाहिए।
- सुबह स्नान के बाद सूर्यदेव को जल अर्पित करें और ‘ऊँ सूर्याय नम:’ मंत्र का जप करें।
- हनुमान जी के सामने दीपक जलाकर हनुमान चालीसा का पाठ करना भी अत्यंत पुण्यकारी माना गया है।
- इस अमावस्या पर किसी सार्वजनिक स्थान पर प्याऊ लगवाएं या किसी प्याऊ में मटके का और जल का दान भी कर सकते हैं।
- जरूरतमंद लोगों को भोजन कराएं। मौसमी फल जैसे आम, तरबूज, खरबूजा का दान करें।
- जूते-चप्पल, सूती वस्त्र, छाता भी दान कर सकते हैं। किसी गोशाला में गायों की देखभाल के लिए धन का दान करें और गायों को हरी घास खिलाएं।
- अमावस्या पर सुबह जल्दी उठें और स्नान के बाद सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करें। इसके लिए तांबे के लोटे का इस्तेमाल करें। अर्घ्य चढ़ाते समय ऊँ सूर्याय नम: मंत्र का जप करना चाहिए। सूर्य को पीले फूल चढ़ाएं। सूर्य देव के लिए गुड़ का दान करें। किसी मंदिर में पूजा-पाठ में काम आने वाले तांबे के बर्तन दान कर सकते हैं।
- घर की छत पर या किसी अन्य सार्वजनिक स्थान पर पक्षियों के लिए दाना-पानी रखें।
- वैशाख मास की अमावस्या पर ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जप करते हुए शिवलिंग पर ठंडा जल चढ़ाएं। बिल्व पत्र, धतूरा, आंकड़े का फूल, जनेऊ, चावल आदि पूजन सामग्री अर्पित करें। मिठाई का भोग लगाएं। धूप-दीप जलाएं, आरती करें। पूजा के बाद प्रसाद बांटें और खुद भी लें। किसी मंदिर में शिवलिंग के लिए मिट्टी के कलश का दान करें, जिसकी मदद से शिवलिंग पर जल की धारा गिराई जाती है।
चावल से तृप्त होते हैं पितर देव
चावल से बने सत्तू का दान इस दिन पितरों के लिए किए जाने वाले श्राद्ध में चावल से बने पिंड का दान किया जाता है और चावल के ही आटे से बने सत्तू का दान किया जाता है। इससे पितृ खुश होते हैं। चावल को हविष्य अन्न कहा गया है यानी देवताओं का भोजन। चावल का उपयोग हर यज्ञ में किया जाता है। चावल पितरों को भी प्रिय है। चावल के बिना श्राद्ध और तर्पण नहीं किया जा सकता। इसलिए इस दिन चावल का विशेष इस्तेमाल करने से पितर संतुष्ट होते हैं।