
RBI ने बैंकों से पूछा कि एक ही ग्राहक के लिए कई ऐप्स क्यों? तकनीकी खराबियों और संसाधनों की बर्बादी के कारण यह सवाल उठा. बैंकों को जून तक जवाब देने का समय दिया गया है.

हाइलाइट्स
- RBI ने बैंकों से कई ऐप्स बनाने पर सवाल उठाया.
- बैंकों को जून तक जवाब देने का समय दिया गया है.
- तकनीकी खराबियों और संसाधनों की बर्बादी का मुद्दा उठा.
नई दिल्ली. क्या एक ही ग्राहक के लिए एक ही बैंक को दो-दो ऐप्स पेश करने चाहिए? भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने देश के बैंकों से अब यही सीधा सवाल पूछा है. केंद्रीय बैंक यह जानना चाहता है कि एक बैंक के लिए कई सारे ऐप्स बनाने की जरूरत आखिर क्यों आन पड़ी है. मनीकंट्रोल की एक रिपोर्ट के अनुसार, आरबीआई ने हाल ही में कई बैंकों से यह जानना चाहा है कि आखिर एक ही ग्राहक वर्ग को लक्षित करने के लिए इतने सारे मोबाइल ऐप क्यों बनाए जा रहे हैं. दरअसल, यह मामला तब गर्माया जब पिछले कुछ महीनों में कई बैंकिंग ऐप्स में तकनीकी खराबी आई और ग्राहकों को परेशानी हुई. हालांकि, आरबीआई ने अभी तक आधिकारिक रूप से इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं की है और न ही इस संबंध में मनीकंट्रोल द्वारा भेजे गए ई-मेल का जवाब दिया है.
सूत्रों के मुताबिक, आरबीआई की ओर से फिलहाल कोई औपचारिक निर्देश नहीं आया है, लेकिन यह संकेत जरूर दे दिया गया है कि इस तरह की दोहराव वाली नीति पर बैंकों को पुनर्विचार करना चाहिए. बैंकों को जून तक जवाब देने का समय दिया गया है. एक वरिष्ठ बैंकर ने बताया कि मुख्य बैंकिंग ऐप और नए लॉन्च किए गए ऐप्स के बीच न सिर्फ तकनीकी निवेश बंटता है, बल्कि ग्राहक अनुभव भी प्रभावित होता है. ग्राहक सोच में पड़ जाता है कि कौन-सा ऐप डाउनलोड करे, किसमें खाता खोले और किसमें ट्रांजैक्शन करे.
ऐप से बैंकों है कुछ ज्यादा ही प्रेम
दरअसल, देश के बड़े-बड़े बैंक जैसे कोटक महिंद्रा, इंडसइंड बैंक और एचडीएफसी बैंक आदि के पास एक से ज्यादा ऐप हैं. ये ऐप एक ही तरह के ग्राहकों के लिए. कोटक के पास Kotak Bank और Kotak 811, इंडसइंड के पास IndusInd और Indie, और एचडीएफसी के पास HDFC Bank और PayZapp जैसे ऐप हैं. खास बात ये है कि ये सभी ऐप्स खुदरा ग्राहकों को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं, और इनके फीचर्स और सेवाओं में बहुत ज्यादा फर्क नहीं है.
संसाधनों की बर्बादी
RBI को लगता है कि ऐसा करने से संसाधनों की बर्बादी हो रही है. तकनीकी टीम, फंडिंग और मार्केटिंग—सब जगह दोहरी मेहनत लग रही है. ग्राहक भी भ्रमित होते हैं कि कौन-सा ऐप इस्तेमाल करें. एक बैंक अधिकारी ने बताया कि करीब 4-5 साल पहले कुछ बैंकों ने डिजिटल क्रांति के दौर में “डिजिटल बैंक” की थीम पर काम शुरू किया था. नए ऐप्स को अलग इकाई बनाकर पेश किया गया, ताकि बैंक का मूल्यांकन (Valuation) बढ़े और बाजार में बेहतर पहचान बने. लेकिन अब रिजर्व बैंक इस रणनीति से खासा असहमत दिख रहा है.