
सुप्रीम कोर्ट की ओर से राष्ट्रपति और राज्यपालों को बिलों को मंजूरी देने की समयसीमा तय किये जाने पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने नाराजगी जताई है. उन्होंने कहा कि हम ऐसी स्थिति नहीं रख सकते, जहां अदालतें भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दें. उन्होंने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 142 के तहत मिले कोर्ट को विशेष अधिकार लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ 24×7 उपलब्ध न्यूक्लियर मिसाइल बन गया है.
अनुच्छेद 142 के तहत भारत का सुप्रीम कोर्ट पूर्ण न्याय (कम्पलीट जस्टिस) करने के लिए कोई भी आदेश, निर्देश या फैसला दे सकता है, चाहे वह किसी भी मामले में हो. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि भारत ने ऐसे लोकतंत्र की कल्पना नहीं की थी, जहां जज कानून बनाएंगे, कार्यपालिका का काम स्वयं संभालेंगे और एक सुपर संसद के रूप में कार्य करें.
पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार यह निर्धारित किया था कि राष्ट्रपति को राज्यपाल की ओर से विचारार्थ सुरक्षित रखे गए विधेयकों पर संदर्भ प्राप्त होने की तिथि से तीन माह के भीतर निर्णय लेना चाहिए. उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘‘हाल ही में एक फैसले में राष्ट्रपति को निर्देश दिया गया है. हम कहां जा रहे हैं? देश में क्या हो रहा है? हमें बेहद संवेदनशील होना होगा. यह कोई समीक्षा दायर करने या न करने का सवाल नहीं है. हमने इस दिन के लिए लोकतंत्र का सौदा नहीं किया था. राष्ट्रपति को समयबद्ध तरीके से फैसला करने के लिए कहा जा रहा है और यदि ऐसा नहीं होता है, तो संबंधित विधेयक कानून बन जाता है.’’
उपराष्ट्रपति ने राज्यसभा के 6वें बैच के प्रशिक्षुओं को संबोधित करते हुए कहा, “मैं हाल ही की घटनाओं का उल्लेख करता हूं. वे हमारे दिमाग पर छाए हुए हैं. 14 और 15 मार्च की रात को नई दिल्ली में एक जज के निवास पर एक घटना हुई. सात दिनों तक किसी को इसके बारे में पता नहीं था. हमें अपने आप से सवाल पूछने होंगे. क्या देरी समझने योग्य है? क्षमा करने योग्य है? क्या यह कुछ मौलिक प्रश्न नहीं उठाता?”
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शक्तियों के विभाजन पर जोर देते हुए कहा, “कार्यपालिका, सरकार, लोगों की ओर से चुने जाते हैं. सरकार संसद के प्रति जवाबदेह होती है, सरकार चुनाव में लोगों के प्रति जवाबदेह होती है. वहां जवाबदेही का सिद्धांत संचालन में है. संसद में आप महत्वपूर्ण सवाल पूछ सकते हैं क्योंकि शासन कार्यपालिका से है.”