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Ajab Gajab: कुम्हार खेड़ा में लगे इस अनूठे मेला स्थल पर झंडा दौड़ प्रतियोगिता का जो आयोजन किया जाता है उसमें जिस खंभे में झंडा टंगा होता है उसको तैयार करने का अंदाज भी अनूठा है. पेड़ के 50 से 60 फीट लंबे तने क…और पढ़ें

इस तरीके का चिकना खंभा मेले के लिए तैयार किया जाता है
हाइलाइट्स
- खंडवा में मेघनाद मेले का आयोजन
- झंडा दौड़ प्रतियोगिता में किया जाता है चिकना खंभा तैयार
- मेले में युवाओं को खंभे पर चढ़ने से रोकती हैं महिलाएं
खंडवा. मध्यप्रदेश के खंडवा जिले के आदिवासी ब्लॉक खालवा में एक अनोखी परंपरा का पालन किया जाता है. यहां रावण के पुत्र मेघनाद की पूजा की जाती है, जो अपने आप में अनूठी है. इस पूजा में थोड़ी सी भी गलती होने पर जान का खतरा बना रहता है. आइए जानते हैं इस अनूठी परंपरा के बारे में.
मेघनाद को प्रसन्न करने के लिए सामुदायिक मेले का आयोजन
खंडवा के खालवा ब्लॉक में गोंड आदिवासियों की संख्या सबसे ज्यादा है. रावण को महान पंडित माना जाता है, लेकिन यहां के गांवों में रावण के पुत्र मेघनाद की पूजा की जाती है. यहां के लोग मेघनाद के पर्व को बहुत ही खास तरीके से मनाते हैं. हर साल रंगपंचमी से चौदस तक बाबा मेघनाद को प्रसन्न करने के लिए सामुदायिक मेले का आयोजन किया जाता है. इस मेले में झंडा तोड़ प्रतियोगिता होती है, जो अपने आप में अनोखी है.
खंभा तैयार करने का अनूठा तरीका
कुम्हार खेड़ा में आयोजित इस मेले में झंडा दौड़ प्रतियोगिता होती है. इसमें जिस खंभे पर झंडा टंगा होता है, उसे तैयार करने का तरीका भी अनूठा है. पेड़ के 50 से 60 फीट लंबे तने को तेल, सर्फ और साबुन से पोतकर कई दिनों तक चिकना किया जाता है. इसके बाद खंभे के ऊपर एक लाल कपड़े में नारियल, बतासे और नगद राशि बांध दी जाती है. गांव के साहसी युवा इस चिकने खंभे पर चढ़कर झंडा तोड़ने का प्रयास करते हैं.
मेले में सज-धजकर आती हैं युवतियां और महिलाएं
इस मेघनाद मेले में युवतियां और महिलाएं सज-धजकर आती हैं. वे हाथ में हरे बांस की लकड़ी लेकर युवाओं को खंभे पर चढ़ने से रोकती हैं और हरी बांस की लकड़ी से उनकी पिटाई भी करती हैं. वहीं ग्रामीण ढोलक बजाकर युवाओं का उत्साह बढ़ाते हैं. प्रतियोगिता तब और रोचक हो जाती है जब कोई युवा ऊपर तक पहुंचकर झंडा तोड़ लेता है. उसे विजेता घोषित किया जाता है.
मेघनाद बाबा को चढ़ाई जाती है मुर्गे और बकरे की बलि
गोंड समाज के लोग मेघनाद बाबा की पूजा करते हैं. अनुयायियों के अनुसार, मेघनाद बाबा आदिवासियों के महान देवता हैं. उन्हें प्रसन्न करने के लिए मुर्गे या बकरे की बलि चढ़ाई जाती है. कुम्हार खेड़ा के रामचंद्र ने बताया कि गोंड समाज के लोग रावण के पुत्र मेघनाद को देवता के रूप में पूजते हैं. होली पर फसल काटने के बाद सभी उनकी सामूहिक पूजा करते हैं.
दशानन रावण की पूजा से कोई मतलब नहीं
आदिवासी गोंड जनजाति के लोग मेघनाद को अपना इष्ट देव मानते हैं. अन्न, जल, सूर्य और चांद को देवता के रूप में पूजा जाता है, उसी तरह मेघनाद बाबा को प्रकृति स्वरूप के रूप में पूजते हैं. इनका दशानन रावण से कोई लेना-देना नहीं है. सिर्फ मेघनाद को ही ये पूजते हैं. इस मौके पर आयोजित मेले में समाजजन परिवार के साथ पूजा करते हैं और मेले का आनंद उठाते हैं.