
Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने 2015 के फर्जी मुठभेड़ मामले में नौ पुलिसकर्मियों की याचिका खारिज की और कहा कि सादे कपड़ों में पुलिस द्वारा सिविलियन व्हीकल को घेरना आधिकारिक कर्तव्य नहीं है.

हाइलाइट्स
- सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस की याचिका खारिज की.
- सादे कपड़ों में फायरिंग को आधिकारिक कर्तव्य नहीं माना.
- डीसीपी पर सबूत नष्ट करने का आरोप बहाल.
नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि सादे कपड़ों में पुलिस कर्मियों द्वारा सिविलियन व्हीकल को घेरना और उसमें सवार व्यक्ति पर गोली चलाना सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने या वैध गिरफ्तारी करने से संबंधित आधिकारिक कर्तव्यों का हिस्सा नहीं माना जा सकता. अदालत ने यह टिप्पणी पंजाब के नौ पुलिसकर्मियों की उस याचिका को खारिज करते हुए की, जिसमें उन्होंने 2015 के कथित फर्जी मुठभेड़ मामले में हत्या के आरोपों को खारिज करने की मांग की थी.
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड किए गए 29 अप्रैल के आदेश में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के 20 मई, 2019 के फैसले को बरकरार रखा गया, जिसमें नौ आरोपी कर्मियों के खिलाफ मामला रद्द करने से इनकार कर दिया गया था. इस तर्क को खारिज करते हुए कि शिकायत को आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 197 के तहत प्रतिबंधित किया गया था – जिसके तहत लोक सेवकों पर मुकदमा चलाने के लिए पूर्व मंजूरी की आवश्यकता होती है – अदालत ने कहा कि इस मामले में ऐसी सुरक्षा लागू नहीं थी.
डीसीपी परमपाल सिंह के मामले में, अदालत ने कहा कि वाहन के रजिस्ट्रेशन प्लेट को हटाने का कथित कृत्य – यदि साबित हो जाता है – स्पष्ट रूप से सबूतों को दबाने के उद्देश्य से किया गया था और इसे किसी भी वास्तविक पुलिस कार्य से उचित रूप से नहीं जोड़ा जा सकता है. कोर्ट ने कहा, “जहां आरोप ही सबूतों को दबाने का है, रिकॉर्ड के सामने संबंध अनुपस्थित है.”
राकेश रंजन कुमार को डिजिटल पत्रकारिता में 10 साल से अधिक का अनुभव है. न्यूज़18 के साथ जुड़ने से पहले उन्होंने लाइव हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण, ज़ी न्यूज़, जनसत्ता और दैनिक भास्कर में काम किया है. वर्तमान में वह h…और पढ़ें
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