जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकवादी हमले ने देश को झकझोर कर रख दिया। इस हमले में आतंकियों ने 26 निर्दोष लोगों की जान ले ली, जिनमें ज्यादातर पर्यटक थे। उन आतंकियों और बैकर्स को पकड़ने के लिए सुरक्षा एजेंसियां लगातार तलाशी अभियान में जुटी हुई हैं और अब तक कई आतंकी ठिकाने और मॉड्यूल का भंडाफोड़ हो चुका है। लेकिन आपको बता दें कि ऐसा ही एक भयावह आतंकी हमला 2008 में मुंबई में हुआ था, जिसे 26/11 आंतकी हमला कहा जाता है। इस हमले को अंजाम देने वालों में एक आतंकी अजमल कसाब को सुरक्षा बलों ने जिंदा पकड़ा था, जिसे आज ही के दिन यानी 6 मई 2010 को विशेष अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी। अजमल कसाब को फांसी की सजा देने का फैसला पाकिस्तान के लिए एक बड़ा संदेश था, क्योंकि कसाब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के फरीदकोट गांव का निवासी था और उसने पाकिस्तान में आतंकी ट्रेनिंग ली थी।
समुद्र के रास्ते मुंबई में घुसे थे आतंकी
26 नवंबर 2008 वह दिन था जब भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई आतंकवादियों के हमले से दहल गई थी। पाकिस्तान के आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के 10 आतंकी समुद्र के रास्ते मुंबई में घुसे थे। इस हमले में अजमल कसाब भी शामिल था, जिसने एक ओर आतंकवादी के साथ मिलकर छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (सीएसटी) पर अंधाधुंध गोलीबारी की। इसके अलावा, ताज होटल, ओबेरॉय ट्राइडेंट होटल, नरीमन हाउस और लियोपोल्ड कैफे जैसे प्रमुख स्थानों पर भी हमले किए गए।
आतंकी हमले का वीडियो हुआ था वायरल
अजमल कसाब और उसके साथी अबू इस्माइल ने सीएसटी स्टेशन पर करीब 59 निर्दोष लोगों की जान ली। उनका एके-47 राइफल और विस्फोटक से हमला करने का वीडियो और तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो गईं, जिससे यह हमला और भी भयावह बना। वहीं, अन्य आतंकवादियों ने ताज होटल और ओबेरॉय ट्राइडेंट होटल में सैकड़ों लोगों को बंधक बना लिया था।
9 आतंकी मारे गए, कसाब पकड़ा गया
इस हमले के बाद भारतीय सुरक्षा बलों ने तीन दिनों तक ऑपरेशन चलाया, जिसमें 9 आतंकवादी मारे गए, लेकिन अजमल कसाब को 27 नवंबर 2008 को जिंदा पकड़ा गया। उसे पकड़ने के दौरान मुंबई पुलिस के जवान तुकाराम ओंबले शहीद हो गए, जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना कसाब को पकड़ने की कोशिश की थी।
लश्कर-ए-तैयबा ने दी थी आतंकी ट्रेनिंग
कसाब से पूछताछ में यह खुलासा हुआ कि वह पाकिस्तान के फरीदकोट का रहने वाला था और लश्कर-ए-तैयबा ने उसे आतंकी ट्रेनिंग दी थी। गिरफ्तारी के बाद विशेष अदालत ने कसाब के खिलाफ मुकदमा चलाया। उसकी सुनवाई के दौरान कई अहम खुलासे हुए, जिनमें उसकी अपराधों की स्वीकारोक्ति और फिर बाद में बयान बदलने की कोशिशें भी शामिल थीं।
चार्जशीट में लगाए गए थे 86 आरोप
2009 में 11,000 पन्नों की चार्जशीट दायर की गई, जिसमें कसाब के खिलाफ हत्या, देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने और आतंकवाद जैसे 86 आरोप लगाए गए। मई 2010 में उसे दोषी ठहराया गया और 6 मई 2010 को विशेष अदालत ने कसाब को फांसी की सजा सुनाई।
21 नवंबर 2012 को दी गई फांसी
कसाब ने सजा के खिलाफ अपील की, लेकिन 2011 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने विशेष अदालत के फैसले को बरकरार रखा। सुप्रीम कोर्ट ने भी 2012 में उसकी फांसी की सजा पर यह कहते हुए मुहर लगाई कि कसाब ने कभी भी अपनी गलती पर पश्चाताप नहीं दिखाया और वह खुद को पाकिस्तानी देशभक्त मानता था। अजमल कसाब ने दया याचिका दायर की, लेकिन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के समक्ष यह याचिका खारिज कर दी गई। आखिरकार 21 नवंबर 2012 को पुणे की यरवदा जेल में उसे फांसी दी गई। इस ऑपरेशन को ‘ऑपरेशन एक्स’ नाम दिया गया, जो पूरी तरह गोपनीय था।
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