ये नेता कौन थे. इनका नाम था विजयानंद पटनायक यानि बीजू पटनायक. पहले वह पायलट बने. फिर आजादी की लड़ाई में शामिल हुए. सांसद बने. मंत्री बने. मुख्यमंत्री बने, कारोबारी बने. उनके साहस की कहानियां एक नहीं कई हैं.
जब उन्हें प्यार हुआ तो वह रोमांस के लिए दिल्ली से विमान उड़ाते हुए लाहौर लेकर जाते थे. जब शादी की तो विमान की पलटन लेकर लाहौर पहुंचे. एक विमान तो खुद ही उड़ा रहे थे. एक खतरनाक आपरेशन में तो बीवी के साथ विमान लेकर इंडोनेशिया उड़े. वहां से एक नेता को सुरक्षित निकालकर दिल्ली लाए. बाद ये नेता इंडोनेशिया का प्रधानमंत्री बना.
बीजू पटनायक दो बार ओडिशा के मुख्यमंत्री रहे. बाद में उनके बेटे नवीन पटनायक लगातार चार टर्म तक उस राज्य के चीफ मिनिस्टर रहे. बीजू को दूसरे विश्वयुद्ध और 1948 में कश्मीर युद्ध के दौरान बतौर पायलट साहसी कामों के लिए याद किया जाता है.
कहा जाता है कि अगर बीजू पटनायक विमान से भारतीय सेना की टुकड़ी को श्रीनगर में नहीं ले जाते तो जम्मू-कश्मीर पाकिस्तान के कब्जे में होता. ये बहुत साहसिक और जोखिम भरा अभियान था.
कैसे श्रीनगर की पट्टी पर विमान उतारा
बंटवारे के बाद अक्टूबर 1947 में जब पाकिस्तानी कबायली हमलावरों ने कश्मीर पर हमला किया, तो बीजू पटनायक दिल्ली से डकोटा डीसी-3 विमान लेकर उड़े. ये बहुत खतरनाक मिशन था. उन्हें भारतीय सेना की टुकड़ी को जल्दी से जल्दी श्रीनगर पहुंचाना था. इसमें ये खतरा भी था. अगर कबायली श्रीनगर पहुंच गए होते तो बीजू का विमान वहां फंस जाता.
विमान ने हवा में नीचे गोता लगाया
उन्होंने 27 अक्टूबर को अपने विमान से श्रीनगर की हवाई पट्टी के लिए उड़ान भरी. उनके साथ सिख रेजिमेंट के 17 जवानों की टुकड़ी थी. पहले तो उन्होंने विमान से श्रीनगर के चारों ओर एक चक्कर लगाया. फिर एक झटके में उनके विमान ने हवा में एकदम नीचे गोता लगाया. विमान फिर हवाई पट्टी से कुछ फुट की ऊंचाई से गुजरा.
तब विमान को सुरक्षित उतारा
जब उन्होंने सुनिश्चित कर लिया कि श्रीनगर की हवाई पट्टी सुरक्षित है, उस पर दुश्मनों का कब्जा नहीं हुआ है तो उन्होंने विमान को पट्टी पर लाकर उतारा. इसके बाद सिख सैनिक फटाफट उतरे. वो अपने साथ गोली कारतूस और हथियार लेकर आए थे. उन्होंने स्थानीय सैनिकों और पुलिस के साथ मिलकर ऐसा मोर्चा बनाया कि कबायली आगे नहीं बढ़ सकें. ऐसा ही हुआ. भारतीय सैनिकों ने घुसपैठियों को वहां से खदेड़ दिया.
अगले दिन फिर यही काम किया
अगले दिन यानि 28 अक्टूबर 1947 को उन्होंने दूसरी उड़ान भरी. अतिरिक्त सैनिकों व सामग्री को कश्मीर पहुंचाया. ये मिशन बहुत जोखिम भरे थे, क्योंकि श्रीनगर हवाई अड्डे की स्थिति अनिश्चित थी. पाकिस्तानी हमलावरों का खतरा मंडरा रहा था. बीजू के इस साहसिक योगदान को भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण माना जाता है.
इंडोनेशिया के राष्ट्रपति को जकार्ता से बचाकर लाए
बीजू पटनायक ने बतौर पायलट भारत के साथ बाहर इंडोनेशिया में भी खतरनाक आपरेशन किया था. भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें इंडोनेशिया के क्रांतिकारी सुकर्णो को बचाने के लिए भेजा.
नेहरू ने पटनायक से कहा कि वह इंडोनेशियाई स्वतंत्रता सेनानियों को डचों से बचाकर भारत लाएं. इसके बाद बीजू पटनायक 1948 में ओल्ड डकोटा एयरक्राफ़्ट लेकर सिंगापुर से होते हुए जकार्ता पहुंचे. डच सेना ने पटनायक को इंडोनेशियाई हवाई क्षेत्र में घुसते ही मार गिराने कोशिश की. इस अभियान में उनकी पत्नी ज्ञानवती सेठी भी उनके साथ थीं. तब उनके बेटे नवीन पटनायक महज एक महीने के थे.
विमान से सुकर्णों को लेकर दिल्ली आए
बीजू पटनायक और उनकी पत्नी ज्ञानवती ने जर्काता के पास आनन-फानन विमान उतारा. वहां से इंडोनेशिया के प्रमुख स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सुल्तान शहरयार और डॉ. सुकर्णो को लेकर दिल्ली आए. फिर डॉ. सुकर्णो आजाद इंडोनेशिया के पहले राष्ट्रपति बने.
इस बहादुरी के लिए पटनायक को मानद रूप से इंडोनेशिया की नागरिकता दी गई. उन्हें इंडोनेशिया के सर्वोच्च सम्मान भूमि पुत्र से नवाजा गया. पटनायक ने 1940 के दशक की शुरुआत में रॉयल इंडियन एयर फोर्स में पायलट रहते हुए म्यांमार समेत कई युद्घग्रस्त क्षेत्रों में अपनी सेवाएं दी थीं. म्यांमार से वह ब्रिटिश सैनिकों को बचाकर लाए थे.
प्राइवेट एयरलाइंस शुरू की
बीजू पटनायक को एविएशन इंडस्ट्री में इतनी दिलचस्पी थी कि दिल्ली फ्लाइंग क्लब और एयरनॉटिक ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया में पायलट का प्रशिक्षण लेने के लिए पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी. ट्रेनिंग के बाद उन्होंने प्राइवेट एयरलाइंस के साथ काम शुरू किया.
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने रॉयल इंडियन एयरफोर्स को सेवाएं दीं. वायुसेना की नौकरी के बाद बीजू पटनायक ने भारत की सबसे पहली एयरलाइन कंपनियों में एक कलिंगा एयरलाइंस शुरू की. कलिंगा एयरलाइंस बहुत मुनाफे ने साथ चल रही थी.
इसी बीच 1953 में भारत सरकार ने बीजू पटनायक से कलिंगा एयरलाइंस खरीदकर उसे इंडियन एयरलाइंस में मर्ज कर दिया. बीजू पटनायक ने अपनी मौत को लेकर एक बार कहा था, ‘किसी लंबी बीमारी के बजाय मैं विमान दुर्घटना में मरना चाहूंगा. नहीं तो फिर ऐसा हो कि मैं तुरंत ही मर जाऊं. मैं गिरूं और मर जाऊं.’ हालांकि, ऐसा हो नहीं पाया. उनका हार्ट और सांस से जुड़ी बीमारी के चलते 17 अप्रैल 1997 को निधन हुआ.
कैसे हुआ प्यार
बीजू पटनायक ने अपनी पत्नी ज्ञानवती सेठी को पहली बार लाहौर में टेनिस कोर्ट में देखा था. वह टेनिस की अच्छी खिलाड़ी थीं. बीजू उनसे प्यार कर बैठे. दोनों की शादी 1939 में हुई. उनकी शादी में टाइगर मोट विमान की फ्लीट लाहौर पहुंची थी. एक प्लेन को बीजू खुद उड़ा रहे थे.
बीजू पटनायक ने 1975 के आपातकाल का विरोध किया. अन्य नेताओं के साथ उन्हें भी जेल में बंद रहना पड़ा. जब मोरारजी देसाई की सरकार बनी तो बीजू को केंद्र में इस्पात मंत्री बनाया.
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