हब्बा खातून: कश्मीर की प्रेमिका और कवियित्री की अद्भुत कहानी.

कश्मीर की वादियों में जब वसंत आता है. चिनार के पेड़ों के पत्ते सरसराते हैं. तब झीलों के किनारे और गांवों की गलियों में एक नाम लिया जाता है – हब्बा खातून. एक कवियित्री, एक प्रेमिका, एक विद्रोही और एक विरहिणी. उसकी प्रेम कहानी और गीत तीन सदियों बाद भी कश्मीर की आत्मा बने हुए हैं. जब घाटी में कोई प्रेम करता है तो हब्बा खातून के गीत जरूर गुनगुनाता है.

हब्बा खातून का असली नाम ज़ून (चांदनी) था. वह 16वीं सदी के कश्मीर में पंपोरा (आज का पाम्पोर) नामक गांव में एक हिंदू ब्राह्मण परिवार में पैदा हुई. बचपन से ही ज़ून गजब की सुंदर और बुद्धिमान थी.

कहा जाता है कि जब ज़ून वसंत के दिनों में खेतों में गाती थी तो उसकी आवाज़ सुनने के लिए लोग अपने काम छोड़कर वहीं रुक जाया करते थे. उसके गीतों में कश्मीर की मिट्टी की खुशबू, पहाड़ों की ठंडक और प्रेम की कोमलता थी.

विवाह हुआ लेकिन टिक नहीं पाया
ज़ून का विवाह कम उम्र में ही एक कठोर स्वभाव के पंडित युवक से कर दिया गया. उसे उसका गीत गाना, खुलेपन से बातें करना और प्रकृति से प्रेम करना पसंद नहीं आता था. शादी के कुछ ही सालों बाद ज़ून का वैवाहिक जीवन टूट गया.

हब्बा खातून का जन्म 16वीं सदी में कश्मीर के एक गांव में ब्राह्मण परिवार में हुआ. वह बचपन से गीत लिखती और गाती थी. वह ना केवल बेहद खूबसूरत और बुद्धिमान युवती थी. (Image generated by Leonardo AI)

सूफ़ी असर में धर्म बदला 
लोककथाओं के अनुसार, ज़ून ने सूफ़ी फकीरों और कश्मीर के रेशी संतों के संपर्क में आकर इस्लाम अपना लिया. उस समय कश्मीर में सूफ़ी मत का गहरा असर था, जो प्रेम, संगीत और मानवता को धर्म से ऊपर रखता था. ये वो दौर भी था, जब कश्मीर में हिंदू ब्राह्मणों ने बड़े पैमाने पर धर्म बदला था.

सुंदर, बुद्धिमान हब्बा के गीतों की ख्याति फैलने लगी
इस्लाम अपनाने के बाद ज़ून का नाम हब्बा खातून रखा गया. “हब्बा” का अर्थ है, वो जो सबको प्रिय हो. हब्बा खातून की सुंदरता, बुद्धिमत्ता और उसके गीतों की ख्याति दूर-दूर तक फैलने लगी.

कश्मीर के युवराज को उससे प्यार हो गया
उसी दौरान कश्मीर के युवराज युसुफ़ शाह चक की नज़र उस पर पड़ी. कहा जाता है कि डल झील के किनारे एक मेले में युसुफ़ शाह ने हब्बा खातून को पहली बार गाते हुए सुना. उसकी आवाज़ में ऐसी कशिश थी कि युवराज मंत्रमुग्ध रह गया.

कश्मीर के युवराज युसुफ़ शाह चक  को उससे प्यार हो गया. उसके बाद दोनों ने शादी कर ली. तब हब्बा कश्मीर की रानी बन गई(Image generated by Leonardo AI)

युसुफ़ शाह ने हब्बा से मिलने की इच्छा जताई. जब दोनों की भेंट हुई, तो दोनों में एक गहरा आत्मिक संबंध बन गया. दोनों का प्रेम लोकगीतों, काव्य और दर्शन पर आधारित था.

हब्बा फिर कश्मीर की रानी बन गई
युसुफ़ शाह ने हब्बा खातून को अपनी बेगम बनाया. उसे दरबार में कवियित्री और सलाहकार के रूप में सम्मान दिया. हब्बा खातून ने युसुफ़ शाह के साथ रहते हुए कई गीत रचे, जो प्रेम, विरह, प्रकृति और स्त्री स्वतंत्रता पर आधारित थे. हब्बा अब कश्मीर की रानी बन गई.

कहा जाता है कि हब्बा खातून ने युसुफ़ शाह को सूफ़ी और रेशी दर्शन में दीक्षित किया. उनके प्रेम का एक अध्यात्मिक रूप भी था. वैसे हब्बा को कश्मीर की मीरा भी कहा जाता है.

अकबर ने उसके पति कैद कर लिया
जब मुग़ल बादशाह अकबर ने कश्मीर पर क़ब्ज़ा करने का फैसला लिया, तो उसने छल से युसुफ़ शाह चक को लाहौर बुलवा कर क़ैद कर लिया. इसके बाद युसुफ़ शाह को पटना (बिहार) में नज़रबंद कर दिया गया, जहां उसकी मृत्यु हो गई.

हब्बा ने विरह में अपने सबसे मार्मिक गीत लिखे. उसकी कविताएं आज भी कश्मीर में वान्वुन, शादी-ब्याह और महफ़िलों में गाई जाती हैं. (Image generated by Leonardo AI)

तब उसने विरह के गीत लिखे
कहा जाता है कि हब्बा खातून उस दिन से डल झील के किनारे बैठकर रोज़ उसका इंतज़ार करती थी. हब्बा ने विरह में अपने सबसे मार्मिक गीत लिखे. उसकी कविताएं आज भी कश्मीर में वान्वुन, शादी-ब्याह और महफ़िलों में गाई जाती हैं.

कश्मीरी लोकसंगीत की आत्मा है उसकी कविताएं
हब्बा खातून की कविताओं को कश्मीरी लोकसंगीत की आत्मा कहा जाता है. उसकी कविता में प्रेम और विरह दोनों का ऐसा मिश्रण है कि सुनने वाला आज भी रो उठे.
उसकी एक प्रसिद्ध कविता का अनुवाद कुछ इस तरह है.

“मेरे प्रिय, तुम कहां खो गए,
मेरे दिल की धड़कन अब थम सी गई.
वादी में फूल अब भी खिलते हैं,
पर तुम बिन ये सब सूना सा लगता है.”

उनकी कविताएं न केवल प्रेम की अभिव्यक्ति थीं, बल्कि कश्मीरी संस्कृति और जीवन शैली का भी दिखाती थीं.

कश्मीर में खूब गाई जाती हैं हब्बा की कविताएं
आज भी कश्मीर की शादियों, सूफ़ी महफ़िलों और लोक संगीत में हब्बा खातून की कविताएं खूब गाई और गुनगुनाई जाती हैं. उसकी विरह कविताएं कश्मीरी साहित्य की सबसे खूबसूरत धरोहर मानी जाती हैं. डल झील के किनारे ‘हब्बा खातून का टीला’ और सोपोर में ‘हब्बा खातून पहाड़ी’ उसके नाम पर मौजूद है.

बाकी जिंदगी कैसे गुजरी
हब्बा ने अपना बाकी जीवन सादगी और एकांत में बिताया. कहा जाता है कि वह अपने गांव लौट आईं. कविताओं के माध्यम से अपने दुख जाहिर करती रही. उसकी प्रेम कहानी कश्मीर के लोगों के लिए एक प्रेरणा है.

ये भी कहते हैं कि युसुफ़ शाह चक की गिरफ्तारी और पटना निर्वासन के बाद हब्बा खातून ने दरबार और राजमहल छोड़कर डल झील और पहलगाम के जंगलों में भटकना शुरू कर दिया था. कहा जाता है उसने सूफ़ी फकीरों के साथ जीवन बिताया. आखिरी बरसों में वह पूरी तरह साध्वी जैसी हो गई. लोककथाओं के अनुसार, डल झील के किनारे या पहलगाम की पहाड़ियों में उसका देहांत हुआ.

उसकी रूह डल पर भटकती है
ये भी कहा जाता है कि बाद में उसने व्रत उपवास करते हुए प्राण त्यागे जबकि कुछ का कहना है कि वह पहलगाम के पास एक सूफ़ी ज़ियारत पर हमेशा के लिए लापता हो गई. वैसे उसकी कोई मजार या कब्र नहीं है. लोग कहते हैं उसकी रूह आज भी डल झील की धुंध में भटकती है.

हब्बा खातून पर कुछ डॉक्यूमेंट्री, लोकनाट्य और कश्मीरी टीवी सीरियल बन चुके हैं. 1990 के दशक में दूरदर्शन कश्मीर ने ‘हब्बा खातून’ नामक एक टीवी धारावाहिक बनाया था. 2018 में चर्चा थी कि संजय लीला भंसाली या विशाल भारद्वाज हब्बा खातून और युसुफ़ शाह चक की प्रेम कहानी पर एक ऐतिहासिक फिल्म बनाने का मन बना रहे थे लेकिन कश्मीर की परिस्थितियों और राजनीतिक अस्थिरता के कारण वह प्रोजेक्ट ठंडे बस्ते में है.

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