Parents left him at the railway station considering him a burden | माता-पिता ने बोझ समझ रेलवे स्टेशन पर छोड़ा: 25 साल बाद बनीं अफसर; ब्लाइंड बेटी एमपी की रेवेन्यू ऑफिसर बनी

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5 मिनट पहले
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‘हौंसले भी किसी हकीम से कम नहीं होते,

हर तकलीफ में ताकत की दवा देते हैं’

जावेद अख्तर साहब की ये पंक्तियां महाराष्ट्र की माला पापलकर के जीवन और उनके बुलंद हौंसले पर फिट बैठती हैं।

पिछले दिनों महाराष्ट्र पब्लिक सर्विस कमीशन ने ग्रुप C एग्जाम का रिजल्ट जारी किया और सिलेक्ट हो चुके कैंडिडेट्स में माला का भी नाम था। 18 अप्रैल को माला को उनके सिलेक्शन का मेल आया और इसी के साथ उन्हें ये विश्वास हो गया कि जीवन में कुछ भी नामुमकिन नहीं है।

मां-बाप ने रेलवे स्टेशन पर छोड़ा, अब अफसर बनीं

माला ने 2023 में ये एग्जाम दिया था। 22 महीने बाद इसका रिजल्ट जारी किया गया है। अब 26 साल की माला नागपुर के कलेक्टर के ऑफिस में रेवेन्यू असिस्टेंट के तौर पर काम करेंगी।

मगर उनका जीवन इतना आसान नहीं है। करीब 20 साल पहले जलगांव रेलवे स्टेशन पर उनके माता-पिता ने उन्हें छोड़ दिया था। कुछ दिन रिमांड होम में रहने के बाद उन्हें शंकर बाबा पालकर के आश्रम में भेज दिया गया।

शंकर बाबा पालकर अमरावती के एक सोशल वर्कर हैं जिन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया जा चुका है। वज्जार स्थित उन्हीं के आश्रम में रहकर माला ने पढ़ाई की और महाराष्ट्र पब्लिक सर्विस कमीशन का एग्जाम क्लियर किया।

10 साल की उम्र में पता चला देख नहीं सकतीं

माला बाबा पालकर के आश्रम में उनकी बेटी की तरह रहने लगीं। उनके डॉक्यूमेंट्स में भी बाबा पालकर का नाम ही पिता के नाम की जगह लिखा जाने लगा। माला जब 10 साल की थीं तो उन्हें पता चला कि दोनों ही आंखों से वो नहीं देख सकतीं। केवल 5% उनका फंक्शनल विजन था और उनकी आंखें बेहद कमजोर थीं।

स्वामी विवेकानंद ब्लाइंड स्कूल से माला ने पढ़ाई की। इसके बाद अमरावती के भिवापुरकर ब्लाइंड स्कूल से बैचलर्स डिग्री हासिल की।

10वीं में माला को 60% और 12वीं में 65% मार्क्स हासिल हुए।

ऑडियोबुक्स के सहारे पढ़ाई की

अमोल पाटिल की यूनीक अकेडमी से 2019 में माला ने प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी शुरू की। लेकिन कोविड महामारी के चलते क्लासेज को ऑनलाइन मोड पर शिफ्ट करना पड़ा। ऐसे में माला और उनके जैसे कई ब्लाइंड स्टूडेंट्स थे जिन्हें पढ़ाई में दिक्कत होने लगी। इनके लिए अमोल पाटिल ऑडियोबुक्स तैयार करने लगे और इन्हीं ऑडियोबुक्स के सहारे सभी ब्लाइंड बच्चे पढ़ने लगे।

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