कश्मीर में खून, अमेरिका के लिए खनिज
घटना के ठीक एक दिन पहले पाकिस्तान ने अमेरिका में $8 ट्रिलियन के मिनरल प्रोजेक्ट्स को लेकर हाई-प्रोफाइल फोरम आयोजित किया था. एक तरफ पाकिस्तान दुनिया को अपने ‘आर्थिक कायाकल्प’ की कहानी सुना रहा था, दूसरी तरफ उसके आतंकी कश्मीर में ‘धार्मिक पहचान’ के नाम पर नरसंहार कर रहे थे. अमेरिकी M4 राइफलों से लैस हमलावरों ने पहले धर्म पूछा, फिर गोली मारी. क्या ये सिर्फ इत्तेफाक है कि अमेरिका की विदेश नीति में ‘क्रिटिकल मिनरल्स’ की भूख और पाकिस्तान की ‘जिहादी भूख’ एक साथ सक्रिय हैं?
पहलगाम हमला: जिहादी स्क्रिप्ट में नया अध्याय
पहलगाम हमले की जिम्मेदारी ‘द रेसिस्टेंस फ्रंट’ यानी TRF ने ली. यह लश्कर-ए-तैयबा (LeT) का नकाबपोश संगठन है. ये वही लश्कर है जिसे पाकिस्तान की ISI आज भी आर्थिक, सैन्य और रणनीतिक मदद देती है. इस हमले में धर्म के आधार पर लोगों की पहचान की गई. हिन्दू और ईसाई पर्यटकों को इसलिए मारा गया क्योंकि वे कलमा नहीं पढ़ पाए.
सिलचर के प्रोफेसर देबाशीष भट्टाचार्य ने जान बचाने के लिए कलमा पढ़ा, पत्नी ने सिंदूर और शाका-पोला हटा दिया. फ्लोरिडा से आए NRI को बेटे के सामने मार डाला गया. ईसाई पर्यटक सुशील नथानियल को पत्नी की आंखों के सामने गोली मारी गई. क्या ये धार्मिक नरसंहार नहीं है? क्या अब भी दुनिया इसे ‘पॉलिटिकल कॉन्फ्लिक्ट’ कहेगी?
डिप्लोमेसी-टेरर का खुला गठजोड़
हमले का समय बेहद अहम था. भारत में अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस मौजूद थे, और पीएम मोदी सऊदी अरब के दौरे पर थे. साथ ही, पाकिस्तान अमेरिका को लुभाने में जुटा था कि उसकी लिथियम और कोबाल्ट की खदानें चीन का विकल्प बन सकती हैं. लेकिन, अमेरिका को ये याद रखना होगा कि जिन खदानों के सपने दिखाए जा रहे हैं, वो बलूचिस्तान और KPK में हैं. जहां साल 2024 में पाकिस्तान के 95% आतंकी हमले हुए. वहां न तो कानून है, न स्थायित्व, न जवाबदेही. अमेरिकी निवेश की सुरक्षा का भरोसा उसी पाकिस्तानी आर्मी से लिया जा रहा है, जो पहलगाम जैसे नरसंहार की ‘डीलर’ है.
दो राष्ट्र सिद्धांत और मुनीर का जिहाद
हमले से 6 दिन पहले पाकिस्तान के आर्मी चीफ जनरल असीम मुनीर ने खुलकर कहा – ‘कश्मीर हमारी शिरा है. दो राष्ट्र सिद्धांत हमारा आधार है. हिंदुओं से हमारा कोई मेल नहीं.’ यह बयान सिर्फ एक ‘गीदड़भभकी’ नहीं था, यह खुलेआम जिहाद की भाषा थी. इसके कुछ ही दिन बाद हमला हो गया. इस सिर्फ शब्दों का खेल तो नहीं कहा जा सकता!
अमेरिकी हथियार, पाकिस्तानी आतंक
पहलगाम हमले में इस्तेमाल हुई M4 राइफलें तालिबान की छूटी हुई अमेरिकी डील से लाई गई हैं. अमेरिका ने अफगानिस्तान से वापसी के वक्त जो हथियार वहीं छोड़ दिए, अब वो भारत में नागरिकों को मारने के काम आ रहे हैं. और पाकिस्तान की ISI इन हथियारों को कश्मीर में भेज रही है. ये केवल भारत का नहीं, अमेरिका की नीति और उसके टेक्सपेयर्स का भी अपमान है.
इस हमले के बाद भारत ने तुरंत Indus Waters Treaty को abeyance में डाल दिया. यानी पाकिस्तान अब सिंधु के पानी का हकदार नहीं है. इसके अलावा:
और भारत ने साफ चेतावनी दी है. यही नहीं, अभी कार्रवाई में सैन्य विकल्प भी शामिल हैं.
इस समय पाकिस्तान का असली चेहरा ये है:
ये दोहरे चेहरे वाला पाकिस्तान अब बचने लायक नहीं है. दुनिया को तय करना है, उसे खनिज चाहिए या मानवता? क्योंकि पाकिस्तान अब दोनों को साथ लेकर नहीं चल सकता. भारत अब दबाव में झुकने वाला देश नहीं है.
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