सुप्रीम कोर्ट में 6 और 7 मई को 2002 के गोधरा कांड मामले में गुजरात सरकार और दोषियों की याचिकाओं पर सुनवाई होगी। जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और जस्टिस राजेश बिंदल की बेंच ने गुरुवार को इसकी जानकारी दी।
गुजरात सरकार और दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी है। राज्य सरकार ने जहां 11 दोषियों की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलने के खिलाफ अपील की है, वहीं कई दोषियों ने मामले में उनकी दोषसिद्धि को बरकरार रखने के फैसले को चुनौती दी है।
27 फरवरी 2002 में गुजरात के गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 डिब्बे में आग लगा दी गई थी। ट्रेन में अयोध्या से लौट रहे 59 तीर्थयात्रियों की मौत हो गई थी। इस हादसे के बाद पूरे गुजरात में दंगे भड़क उठे थे।
गोधरा में उग्र भीड़ ने साबरमती एक्सप्रेस के एक डिब्बे को आग के हवाले किया था।
हाई कोर्ट ने 11 दोषियों की सजा फांसी से उम्रकैद में बदली थी गोधरा कांड के बाद चले मुकदमों में करीब 9 साल बाद 31 लोगों को दोषी ठहराया गया था। 2011 में SIT कोर्ट ने 11 दोषियों को फांसी और 20 को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। बाद में अक्टूबर 2017 में गुजरात हाईकोर्ट ने 11 दोषियों की फांसी की सजा को भी उम्रकैद में बदल दिया था।
गुजरात हाई कोर्ट इस फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में कई अपीलें दायर की गई हैं। गुजरात सरकार ने फरवरी 2023 में कहा था कि वह उन 11 दोषियों के लिए मृत्युदंड की मांग करेगी, जिनकी सजा को हाई कोर्ट ने उम्रकैद में बदल दिया था।
गोधरा कांड के बाद गुजरात दंगों में एक हजार से ज्यादा लोग मारे गए गोधरा कांड के बाद गुजरात दंगों में एक हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे। इनमें 790 मुसलमान और 254 हिंदू थे। गोधरा कांड के एक दिन बाद 28 फरवरी को अहमदाबाद की गुलबर्ग हाउसिंग सोसाइटी में बेकाबू भीड़ ने 69 लोगों की हत्या कर दी थी।
मरने वालों में उसी सोसाइटी में रहने वाले कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी भी शामिल थे। इन दंगों से राज्य में हालात इस कदर बिगड़ गए कि स्थिति काबू में करने के लिए तीसरे दिन सेना उतारनी पड़ी थी।
गोधरा ट्रेन कांड देश का सबसे चर्चित दंगा रहा
मोदी को मिली थी क्लीन चिट गुजरात में इस घटना के समय नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री थे। मार्च 2002 में उन्होंने गोधरा कांड की जांच के लिए नानावटी-शाह आयोग बनाया। हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज केजी शाह और सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जीटी नानावटी इसके सदस्य बने।
आयोग ने अपनी रिपोर्ट का पहला हिस्सा सितंबर 2008 को पेश किया। इसमें गोधरा कांड को सोची-समझी साजिश बताया गया। साथ ही नरेंद्र मोदी, उनके मंत्रियों और वरिष्ठ अफसरों को क्लीन चिट दी गई।
2009 में जस्टिस केजी शाह का निधन हो गया, जिसके बाद गुजरात हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस अक्षय मेहता इसके सदस्य बने और तब आयोग का नाम नानावटी-मेहता आयोग हो गया। आयोग ने दिसंबर 2019 में अपनी रिपोर्ट का दूसरा हिस्सा पेश किया। इसमें भी रिपोर्ट के पहले हिस्से में कही गई बात दोहराई गई।
गुजरात के गोधरा में 27 फरवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस के S-6 कोच को बाहर से आग लगाई थी, जिससे अंदर बैठे लोगों को बाहर निकलने का मौका नहीं मिला था।
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