परमात्मा पवित्रता में वास करते हैं। अगर ईश्वर को जीवंत और साकार देखना चाहते हैं तो तन, मन और कर्म से पवित्र रहें। हमारे यहां अक्सर ये बात कही जाती है कि कोई शुभ कार्य करने जा रहे हैं तो पवित्र रहें। शरीर की पवित्रता के लिए स्नान करें, वाणी की पवित्रता के लिए अच्छी बातें कहें और हाथों की पवित्रता के लिए निष्काम कर्म करें। जीवन में पवित्रता को अपनाइए, इसी में ऐश्वर्य है, लक्ष्मी है, शुभता विद्यमान है।
आज जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद जी गिरि के जीवन सूत्र में जानिए हमारी श्रेष्ठताएं कैसे जागृत होती हैं?
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