गांव में रेडियो ठीक करता था ये शख्स, आज 18,700 करोड़ की कंपनी का मालिक, टाटा-महिंद्रा इनके कस्टमर

Success Story: कुछ कर गुजरने का जज्बा हो फिर इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप किस बैकग्राउंड से हैं. इससे भी फर्क नहीं पड़ता कि आप गांव में पैदा हुए या शहर में. यह कहानी एक ऐसी शख्सियत की है, जो गांव में पैदा हुआ. इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स के प्रति दीवानगी थी. रेडियो और इलेक्ट्रिकल सर्किट उसे समझ में आते थे. कई बार तो वे दूसरों के खराब रेडियो को ठीक भी करते थे. बचपन का यही शौक उसके बिजनेस की नींव बना और आज उसके पास 18,000 करोड़ रुपये से अधिक वैल्यूएशन वाली कंपनी है. हम बात कर रहे हैं रामचंद्र नायडू गल्ला (Ramachandra Naidu Galla) की.

हो सकता है कि आपने ‘रामचंद्र नायडू गल्ला’ नाम पहले कभी न सुना हो, लेकिन उनकी कंपनी का नाम जरूर सुना होगा और संभव है कि इनके प्रोडक्ट भी इस्तेमाल किए हों. इनकी कंपनी का नाम है अमारा राजा (Amara Raja). जी हां, वही कंपनी जो अपनी दमदार बैटरियों के लिए पहचानी जाती है. पहले उनकी बैटरी बनाने वाली कंपनी को अमारा राजा बैटरीज़ के नाम से जाना जाता था, लेकिन अब इसे अमारा राजा एनर्जी एंड मोबिलिटी (Amara Raja Energy & Mobility) के नाम से पहचाना जाता है. कंपनी भारतीय शेयर बाजार में लिस्टेड है और इसका वैल्यूएशन 18,700 करोड़ रुपये है.

गांव में पैदा हुए रामचंद्र नायडू गल्ला
रामचंद्र नायडू गल्ला का जन्म 10 जून 1938 को आंध्र प्रदेश के एक दूर-दराज के गांव पेटामिट्टा में हुआ था. वे एक साधारण परिवार में पले-बढ़े. बचपन से ही उन्हें रेडियो और इलेक्ट्रिकल सर्किट ठीक करने का शौक था. सोचिए, 1940 के दशक में इलेक्ट्रिक आइटम्स होती ही कितनी थीं. गांवों में ज्यादातर रेडियो ही हुआ करते थे. अपने इसी शौक के चलते उन्होंने जेएनटीयू अनंतपुर से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की.

गांव पेटामिट्टा से निकलकर वे अमेरिका के मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी पहुंचे और वहां मास्टर्स की डिग्री हासिल की. वे अपने गांव के पहले व्यक्ति बने, जिन्होंने अमेरिका से मास्टर्स किया. अमेरिका में उनके पास एक अच्छी-खासी सैलरी वाली नौकरी थी, लेकिन गल्ला का सपना कुछ और था. वे भारत के ग्रामीण इलाकों को सशक्त बनाने का सपना देखा करते थे.

अमेरिका से लौटे तो पहुंचे करकंबडी
रामचंद्र नायडू ने 1985 में अमेरिका को अलविदा कह दिया. उन्होंने किसी मेट्रो शहर में बसने की बजाय तिरुपति के पास स्थित एक पिछड़े क्षेत्र ‘करकंबडी’ लौटने का फैसला किया. उनका सपना था कि भारत में रोजगार के अवसर पैदा किए जाएं. अपने सर्किट्स के बचपन के शौक को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने 1985 में एक कंपनी की नींव रखी, जिसका नाम था अमारा राजा. यही कंपनी भारत में विश्व-स्तरीय इंडस्ट्रियल बैटरियां बनाने के लिए जानी जाती है.

गल्ला के पास न तो इंफ्रास्ट्रक्चर था और न ही पूंजी, लेकिन उनके पास एक विज़न था. उन्होंने सील्ड मेंटेंनेंस-फ्री (Sealed Maintenance-Free – SMF) बैटरियां पेश कीं, जो पारंपरिक बैटरियों से ज्यादा सुरक्षित, साफ और टिकाऊ थीं. हालांकि शुरुआत में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा.

डीलर्स ने नहीं दिखाई दिलचस्पी, मगर…
गल्ला की बैटरियां उस समय बाजार में नई थीं, इसलिए डीलर्स उसे खरीदने में हिचके और परफॉर्मेंस पर सवाल उठाए. लेकिन गल्ला ने हार नहीं मानी. उन्होंने अपनी बैटरी को और बेहतर करके मार्केट-रेडी बनाया और धीरे-धीरे डीलर्स को भी उनकी बैटरियों पर भरोसा होने लगा.

साल 2000 में उन्होंने अमेरिकन कंपनी जॉनसन कंट्रोल्स के साथ मिलकर ‘एमरॉन’ नाम से एक नई बैटरी लॉन्च की, जो बिना पानी डाले लंबे समय तक चलने वाली और लीक-फ्री थी. यह पुरानी एसिड से भरी बैटरियों से कहीं बेहतर थी. इसके बाद 2008 में उन्हें टाटा मोटर्स और हुंडई जैसी कंपनियों से एक्सक्लूसिव डील मिली. आज यह टाटा, हुंडई, फोर्ड, अशोक लेलैंड, महिंद्रा और 50 से ज्यादा देशों के ग्राहकों को बैटरियाँ सप्लाई करता है.

जलकर खाक हो गया था प्लांट
2010 में एक और बड़ा संकट आया. तिरुपति में अमारा राजा के सबसे बड़े प्लांट में आग लग गई, जिससे 20 करोड़ रुपये का स्टॉक जलकर खाक हो गया. ऑर्डर्स में देरी हुई, बाजार में भरोसा कमजोर पड़ा और चीनी कंपनियों ने मौके का फायदा उठाया. गल्ला की कई रातें जगते हुए गुजरीं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी.

उन्होंने मुनाफे को फिर से निवेश कर 18 महीनों के अंदर एक नया प्लांट खड़ा किया. फिर परिणाम आने लगे. 2012 तक अमारा राजा की बैटरियां गाड़ियों से लेकर टेलीकॉम टावर्स तक में इस्तेमाल होने लगीं और कंपनी की आय 2000 करोड़ रुपये तक पहुंच गई.

कंपनी ने वर्टिकल इंटीग्रेशन, मजबूत डीलर नेटवर्क और B2B फोकस के साथ अपने कारोबार को ट्यूब्युलर बैटरियों, यूपीएस सॉल्यूशंस और ईवी-रेडी एनर्जी सिस्टम्स तक बढ़ाया. 2017 तक कंपनी की कमाई 5000 करोड़ रुपये के पार पहुंची और अमारा राजा भारत की दूसरी सबसे बड़ी बैटरी कंपनी बन गई.

निवेशकों का अटूट भरोसा
कंपनी के शेयरहोल्डिंग पैटर्न पर नजर डालें तो पता चलता है कि अमारा राजा में निवेशकों का अटूट भरोसा है. रामचंद्र गल्ला परिवार के पास मार्च 2025 की तिमाही तक कंपनी की 32.86 फीसदी हिस्सेदारी है. विदेशी संस्थागत निवेशकों (FIIs) ने 20.71 फीसदी हिस्सेदारी है. मार्च 2023 में FIIs के पास 36.19 फीसदी हिस्सेदारी थी. घरेलू संस्थागत निवेशक (DIIs) के पास कंपनी के 14.59 फीसदी शेयर हैं. पिछले साल कंपनी ने 906 करोड़ रुपये का शुद्ध मुनाफा कमाया था. स्क्रीनर पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक इस साल लगभग 1,025 करोड़ रुपये का मुनाफा बनेगा.

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