बहुत बुरे दौर से गुजर रही बहुरूपिया कला
बहुरूपिया कलाकारों का कहना है कि यह कला बहुत बुरे दौर से गुजर रही है. देशभर में लाखों कलाकारों के परिवार की रोजी-रोटी इसी कला पर निर्भर है. बांदीकुई के निवासी और बहुरूपिया कलाकार अकरम का कहना है कि राजस्थान में करीब 2000 कलाकार थे, लेकिन मेकअप का खर्चा बढ़ता गया और मेहनताना इतना कम हो गया कि इस विरासत को अगली पीढ़ी तक पहुंचाना मुश्किल हो गया है. अब गिने-चुने कलाकार ही बचे हैं.
सहयोग की मार झेल रहा बहुरूपिया कला
अकरम ने बताया कि उनके पिता शिवराज बहुरूपिया ने अपनी कला का प्रदर्शन भारत के विभिन्न राज्यों के साथ-साथ लंदन, अमेरिका, हांगकांग, पेरिस, बेल्जियम जैसे देशों में भी किया और भारत का नाम रोशन किया. उनके पिता को 2003 और 2006 में सांस्कृतिक केंद्र विभाग की ओर से सम्मान भी मिला. लेकिन अब कोई कद्रदान नहीं है.
कला को सहेजने वाली हो सकती है आखिरी पीढ़ी
अकरम अपने परिवार में छह भाइयों में सबसे छोटे हैं. सभी भाई फिरोज, नौसाद, शमशाद, सलीम, फरीद इसी कला को आगे बढ़ा रहे हैं. उनका कहना है कि सांस्कृतिक कार्यक्रमों में उनकी कला की तारीफ तो होती है, लेकिन तारीफ से पेट नहीं भरता. इस कला के साथ पूरा देश घूमने के बाद भी वे अपनी पहचान ढूंढते नजर आते हैं. उनके परिवार का इस कला से जीवन यापन करना मुश्किल होता जा रहा है. वे कहते हैं कि इस कला को हम सातवीं पीढ़ी तक लेकर आए हैं, लेकिन मेहनताना बहुत कम होने के कारण यह हमारी आखिरी पीढ़ी हो सकती है.
राजदरबारों की शान हुआ करती थी बहुरूपिया कला
भारत की पारंपरिक लोक कलाओं में से एक बहुरूपिया कला, जो कभी राजदरबारों की शान हुआ करती थी, आज पहचान के संकट से जूझ रही है. कलाकार अकरम, जो राजस्थान के बांदीकुई के निवासी हैं, बताते हैं कि उनके पिता शिवराज बहुरूपिया ने इस कला को देश-विदेश में प्रस्तुत कर भारत का गौरव बढ़ाया. लेकिन अब न तो कलाकारों को उचित मेहनताना मिलता है और न ही समाज से वह सम्मान जो इस विरासत को बचाए रख सके.
सरकार करे संरक्षण और स्थायी रोजगार का हो प्रावधान
अकरम और उनके छह भाई इस परंपरा को सात पीढ़ियों से निभा रहे हैं, लेकिन अब जीवनयापन इतना कठिन हो चला है कि अगली पीढ़ी को इस कला से जोड़ना असंभव लगता है. सांस्कृतिक आयोजनों में सराहना तो मिलती है, पर वह पेट नहीं भरती. वे कहते हैं कि यदि सरकार की ओर से संरक्षण और स्थायी रोजगार का प्रावधान न हुआ, तो यह बहुमूल्य कला जल्द ही इतिहास बन जाएगी.
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