Demand for clay pot air coolers rises offers AC like cooling Desi Jugad for Cooling । कूलर से मिलेगी AC जैसी ठंडी हवा! बड़े काम का है मिट्टी के मटके का ये देसी जुगाड़

Home Made Clay AC: गर्मियों के मौसम की शरुआत हो चुकी है. तेज़ गर्मियों में पंखे नाम की राहत पहुंचाने का काम करते हैं. कुछ लोग इस दौरान अपने बजट के हिसाब से कूलर खरीदते हैं, वहीं कुछ लोग एसी. ऐसे में आज हम आपको कुछ ऐसा बताने जा रहे हैं, जिसका असर आपकी जेब पर भी नहीं पड़ेगा और हवा भी मिलेगी बिल्कुल एयर कंडीशनर (AC) जैसी. वो है पुराना, लेकिन दमदार तरीका मिट्टी के घड़े से बना एयर कूलर. इसकी डिमांड तेजी से बढ़ रही है और गांव और शहरों में लोग इन्हें जमकर खरीद रहे हैं.

AC जैसी ठंडक
पहले जिन घड़ों का इस्तेमाल सिर्फ पानी ठंडा रखने के लिए होता था. अब वही घड़े एक नए रूप में हवा ठंडी करने का भी काम कर रहे हैं. ये ट्रेंड गांव और शहरों में तेजी से ज़ोर पकड़ रहा है, जहां परंपरा और जुगाड़ का मिला-जुला रूप देखने को मिल रहा है. जैसे-जैसे बिजली के बिल बढ़ रहे हैं, वैसे-वैसे लोग इस देसी और सस्ते विकल्प की तरफ बढ़ रहे हैं, जिसकी कीमत करीब 2,000 रुपये से शुरू होती है.

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क्या है खासियत
मिट्टी की खासियत यह है कि वो प्राकृतिक रूप से पानी को धीरे-धीरे भाप बनाकर उड़ाती है, जिससे उसके आसपास की हवा ठंडी हो जाती है. यही तकनीक इन एयर कूलर्स में इस्तेमाल हो रही है. ये घड़े खास तरीके से बनाए जाते हैं, जिनके नीचे पानी भरने की जगह होती है और साइड में एक खुली जगह से हवा बाहर निकलती है. ऊपर एक छोटा पंखा लगाया जाता है, जो घड़े के अंदर से हवा खींचकर बाहर भेजता है. जैसे-जैसे पानी भाप बनता है, हवा ठंडी होकर बाहर निकलती है. कुछ लोग इसमें और असर लाने के लिए घड़े के बाहर गीला कपड़ा भी लपेट देते हैं, जिससे ठंडक और बढ़ जाती है. इसके अलावा भी लोग कुछ अलग तरह के डिजाइन वाले ठंडी हवा देने वाले मिट्टी के घड़े से बने एयर कूलर बना रहे हैं.

बजट में कूलिंग
जहां एक तरफ एसी 25,000 रुपये से ऊपर आते हैं और बिजली का बिल भी बढ़ा देते हैं, वहीं ये मिट्टी के एयर कूलर किफायती हैं. सिंगल फैन वाला 2,600 रुपये में मिल जाता है, डबल फैन वाला करीब 3,900 रुपये और बड़ा कूलर 6,000 रुपये में आता है. बिजली की खपत भी बहुत कम होती है क्योंकि सिर्फ एक छोटा पंखा चलता है. इसीलिए अब ये घरों के साथ-साथ दुकानों, ठेलों और छोटी जगहों में भी खूब इस्तेमाल हो रहे हैं.

छोटे कुम्हार और कारीगर अब इन कूलरों को बनाकर बेच रहे हैं और शहरों तक डिमांड पहुंच चुकी है. इनमें ज़्यादा बिजली नहीं लगती है. आवाज भी कम होती है और इन्हें चलाने के लिए कोई खास तकनीक या मेंटेनेंस की ज़रूरत नहीं होती. इन कूलरों को अब गांवों में तो इलेक्ट्रिक कूलर की जगह लिया जा रहा है.

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कहां मिलते हैं?
अभी ये कूलर ज़्यादातर स्थानीय कुम्हारों या सड़क किनारे की दुकानों में मिलते हैं, लेकिन अब ऑनलाइन भी आने लगे हैं.

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