Watermelon Farming: फर्रुखाबाद के किसान एक ऐसा देसी तरीका अपनाकर खेती कर रहे हैं, जिससे उन्हें एक ही फसल से दोहरा फायदा हो रहा है. न सिर्फ आमदनी बढ़ रही है, बल्कि खर्च भी कम हो रहा है. सोशल मीडिया पर इन दिनों एक किसान दंपती के खेत में काम करते वीडियो वायरल हो रहे हैं, जिन्होंने अपनी मेहनत और देसी तरीके से लोगों का ध्यान खींचा है.
लोकल18 की टीम ने इन वायरल वीडियो की सच्चाई जानने के लिए खोजबीन की, तो सामने आए किसान राजू और उनकी पत्नी. दोनों पिछले 25 सालों से तरबूज की खेती कर रहे हैं. किसान राजू का कहना है कि बाकी फसलों के मुकाबले तरबूज में मेहनत और खर्च दोनों कम होता है, और सबसे खास बात – इसकी बिक्री खेत से ही हो जाती है. फसल दो बार तोड़नी पड़ती है और जब पूरा उत्पादन निकल जाता है, तो बचे हुए पौधों से खाद बना ली जाती है. इस बार किसान राजू ने तरबूज की चामुंडा किस्म बोई है.
खुरपी से होती है खेती, नहीं लगती महंगी खाद
राजू बताते हैं कि तरबूज की फसल को अच्छा उत्पादन देने के लिए बीज, पानी और देखभाल की जरूरत तो होती है, लेकिन वो किसी भी महंगी खाद या दवाओं का इस्तेमाल नहीं करते.
वो सिर्फ एक खुरपी से खेत की निराई करते हैं, जिससे न सिर्फ मेहनत बचती है, बल्कि लागत भी बेहद कम हो जाती है. उनका कहना है कि देसी तरीके से की गई इस खेती में न सिर्फ मेहनत रंग लाती है, बल्कि फसल भी बंपर होती है.
राजू बताते हैं कि जब शुरुआत से ही खेत की अच्छी तरह सफाई कर दी जाती है और घास-फूस को समय से काट दिया जाता है, तो तरबूज के पौधों को बढ़ने के लिए खुली जगह मिलती है और उनकी ग्रोथ शानदार होती है.
तरबूज की फसल से लाखों की कमाई
आलू की खुदाई के बाद किसान तरबूज के बीज बो देते हैं. मई-जून तक ये फसल तैयार हो जाती है. गर्मियों में तरबूज की डिमांड पूरे देश में रहती है, ऐसे में किसान अच्छी कमाई कर लेते हैं.
राजू बताते हैं कि एक बीघा खेत में करीब 3000 रुपए की लागत आती है और वहां से 20 क्विंटल तक तरबूज निकल आता है. बाजार में इन्हें 10 से 20 रुपये किलो तक रेट मिल जाता है, जिससे लाखों की कमाई हो जाती है.
फसल कटने के बाद किसान राजू तरबूज के बचे हुए पौधों से जैविक खाद बनाकर अगली फसलों में इस्तेमाल करते हैं. इससे अगली फसल की पैदावार भी बढ़ जाती है और खेत की उपजाऊ शक्ति भी बनी रहती है.
तरबूज कैसे उगाते हैं?
राजू बताते हैं कि सबसे पहले खेत को समतल करके उसमें एक-एक फुट की दूरी पर बीज या पौधे रोपे जाते हैं. समय से सिंचाई की जाती है और जैसे-जैसे पौधे बढ़ते हैं, उनमें फूल और फिर फल निकलने लगते हैं.
करीब 90 दिनों में तरबूज तैयार हो जाता है और सीधे खेत से बिक्री शुरू हो जाती है.
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