Chaitra Navratri 2025 Day 5: चैत्र नवरात्रि का पावन पर्व चल रहा है. आज यानी गुरुवार, 3 अप्रैल को चैत्र नवरात्रि का पांचवा दिन है. नवरात्रि के पांचवें दिन मां दुर्गा के पंचम स्वरूप, मां स्कंदमाता की पूजा की जाती है. मां स्कंदमाता, भगवान कार्तिकेय (स्कंद) की माता हैं. इन्हें ममता और करुणा की देवी माना जाता है. स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं. इनकी दाहिनी तरफ की ऊपर वाली भुजा में भगवान स्कंद गोद में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है. वहीं, मां की बाईं तरफ की ऊपरी भुजा वरमुद्रा में है और नीचे वाली भुजा में कमल है. स्कंदमाता शेर पर सवार होती हैं. मान्यताओं के अनुसार, चैत्र नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा-अर्चना करने से भक्तों को सुख, समृद्धि और संतान सुख की प्राप्ति होती है. ऐसे में आइए जानते हैं मां स्कंदमाता की पूजा विधि, भोग, मंत्र, शुभ रंग और कथा.
मां स्कंदमाता का मंत्र (Maa Skandmata Mantra)
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।
ध्यान मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु मां स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
मां स्कंदमाता का भोग (Maa Skandmata ka bhog)
मां स्कंदमाता को केले का भोग चढ़ाया जाता है.
मां स्कंदमाता शुभ रंग (Maa Skandmata ka Shubh Rang)
नवरात्रि के पांचवें दिन का शुभ रंग पीला और सफेद है.
मां स्कंदमाता की कथा (Maa Skandmata ki Katha)
पौराणिक कथाओं के अनुसार, तारकासुर नाम का एक राक्षस था. तारकासुर ने ब्रह्मा जी की तपस्या की जिससे खुश होकर ब्रह्मा ने उसे मनचाहा वरदान मांगने को कहा. इसपर तारकासुर ने अमर होने का वरदान मांग लिया. हालांकि, ब्रह्मा जी ने तारकासुर को समझाते हुए कहा कि जो इस संसार में आया है, उसे एक ना एक दिन जाना पड़ता है. ब्रह्मा जी की बात सुनकर तारकासुर ने वरदान मांग लिया कि उसका वध सिर्फ भगवान शिव के पुत्र के हाथों से ही हो.
दरअसल, तारकासुर की ऐसी धारणा थी कि भगवान शिव कभी विवाह नहीं करेंगे, जिससे उसकी कभी मृत्यु नहीं होगी. ब्रह्मा जी से वरदान पाकर तारकासुर ने खुद को अमर समझ लिया और इसी घमंड में उसने देवताओं पर आतंक बढ़ाना शुरू कर दिया. तब देवताओं के कहने पर भगवान शिव ने साकार रूप धारण कर माता स्कंदमाता (इन्हें मां पार्वती भी कहा जाता है) से विवाह किया. मां पार्वती और भगवान शिव ने पुत्र स्कंद यानी कार्तिकेय को जन्म दिया. स्कंदमाता से युद्ध का प्रशिक्षण लेने के बाद कार्तिकेय ने तारकासुर का अंत किया.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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