अखिलेश यादव ने इतिहास के एक पक्षीय लेखन की भी बात कही। दरअसल, समाजवादी पार्टी अध्यक्ष ने लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक यानी पीडीए पॉलिटिक्स के जरिए उत्तर प्रदेश की राजनीति में बड़ा प्रभाव बनाया। इसमें रामजी लाल सुमन सरीखे नेताओं का बड़ा योगदान रहा है। ऐसे में पार्टी उनके खिलाफ किसी भी प्रकार का एक्शन लेने के मूड में नहीं है।
वहीं, 2027 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए समाजवादी पार्टी अध्यक्ष किसी जाति वर्ग को नाराज करने के मूड में नहीं दिख रहे हैं। ऐसे में उनका बयान राजपूत समाज को साधने की रणनीति का हिस्सा दिख रहा है। वे सांसद के बयान को इतिहास के गलत तरीके से लेखन से जोड़कर पेश कर रहे हैं। अखिलेश ने कहा कि हमारे सांसद ने केवल एक पक्षीय लिखे गए इतिहास और पक्षीय की गई व्याख्या का उदाहरण देने की कोशिश की।
सपा अध्यक्ष ने साफ कहा कि हमारा कोई भी प्रयास राजपूत समाज या किसी अन्य समाज का अपमान करना नहीं है। वर्तमान समय में गुजरे हुए वक्त यानी इतिहास के घटनाओं की व्याख्या नहीं की जा सकती है। उन्होंने सीधे तौर पर रामजी लाल सुमन की बातों को तो नहीं दोहराया, लेकिन कहा कि राजकाज के निर्णय अपने समय की परिस्थितियों के हिसाब से लिए जाते थे। ऐसे में लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या अखिलेश भी मान रहे हैं कि तत्कालीन राजकाज के निर्णय के तहत राणा सांगा ने बाबर को आमंत्रित किया?
दरअसल, इसी प्रकार की बातें रामजी लाल सुमन ने की। इसके जरिए वे मुगल आक्रांता को राणा सांगा से जोड़ते दिखे। अब अखिलेश यादव ने अपने सांसद का एक प्रकार से बचाव किया है। इसको लेकर राजनीति गरमाती दिख रही है। अब अखिलेश यादव रामजी लाल सुमन को दलित बताते हुए उनके घर पर हमले को सीधे तौर पर पीडीए पर प्रहार से जोड़ते दिख रहे हैं।
अखिलेश यादव ने रामजी लाल सुमन के घर पर करणी सेना बवाल पर करारा हमला बोला है। उन्होंने कहा कि आगरा में मुख्यमंत्री के उपस्थित रहते हुए भी पीडीए के एक सांसद के घर पर कुछ लोगों द्वारा तोड़फोड़ की। हिंसक वारदात जब रोकी नहीं जा सकती है तो फिर जीरो टॉलरेंस तो जीरो होना ही है। उन्होंने सवाल किया कि क्या मुख्यमंत्री का प्रभाव क्षेत्र दिन पर दिन घट रहा है? या फिर ‘आउटगोइंग सीएम’ की अब कोई सुन नहीं रहा है।
अखिलेश यादव ने कहा कि अगर वे (योगी आदित्यनाथ) अभी भी मुख्यमंत्री हैं तो तुंरत कार्रवाई करें। दोषियों को एआई से पहचानकर दंडित करें, नहीं तो मान लिया जाएगा कि पीडीए सांसद के खिलाफ ये सब उनकी अनुमति से हुआ है। यह निंदनीय है। इस बयान के जरिए करणी सेना के हमले को पीडीए पर हमला के रूप में पेश किया गया है।
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