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नीतीश कुमार कब तक बने रहेंगे बिहार की सियासत का ध्रुव तारा? क्या BJP ने तैयार कर लिया प्लान- N

पटना. बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर दिल्ली में रणनीति बनने का सिलसिला अब शुरू हो गया है. मंगलवार को कांग्रेस ने साफ कर दिया था कि वह बिहार चुनाव 2025 में आरजेडी के साथ मिलकर ही लड़ेगी. वहीं, बुधवार को बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी बिहार एनडीए के बड़े नेताओं के साथ बैठक करेंगे. इससे समझा जा सकता है कि बिहार चुनाव को लेकर राजनीतिक हलचल अब तेज हो गई है. दिल्ली में एनडीए नेताओं की बैठक का मुख्य मुद्दा क्या नीतीश कुमार हैं? क्या नीतीश कुमार सीएम फेस बनाने का औपचारिक ऐलान होगा या फिर उनके विकल्प की तलाश होगी? नीतीश कुमार का लंबा सियासी अनुभव, गठबंधन बदलने की कला और बिहार की जटिल जातिगत समीकरणों में उनकी पकड़, क्या फिर से उनको बिहार का मुख्यमंत्री बनाने में मददगार साबित होगा?

बिहार के सीएम नीतीश कुमार राज्य की राजनीति में पिछले दो दशकों से हावी हैं. बिहार में नीतीश कुमार की छवि एक विकास पुरुष की रही है, जिसने 2005 में लालू प्रसाद यादव के ‘जंगलराज’ को खत्म कर राज्य में कानून का राज और बुनियादी ढांचे में सुधार किया. हालांकि, उनकी सबसे बड़ी पहचान उनकी ‘पलटी मार पॉलिटिक्स’ वाली छवि को लेकर हाल के सालों में होने लगी है. 2013 में बीजेपी के साथ 17 साल पुराना गठबंधन तोड़कर उन्होंने महागठबंधन बनाया और 2015 में आरजेडी के साथ मिलकर चुनाव जीता. फिर, 2017 में वापस एनडीए में लौट आए और 2022 में एक बार फिर से महागठबंधन में चले गए. लेकिन, 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले एक बार फिर से एनडीए में वापसी की.

बिहार की सियासत का ध्रुव तारा
बिहार चुनाव 2020 में भी एनडीए ने नीतीश कुमार को चेहरा बनाया था, लेकिन जेडीयू का प्रदर्शन बेहद खराब रहा. पार्टी ने सिर्फ 43 सीटें जीतीं, जबकि बीजेपी 74 सीटों के साथ गठबंधन की सबसे बड़ी ताकत बनकर उभरी. इसके बावजूद पीएम मोदी ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया. राजनीतिक जानकारों की मानें तो बीजेपी का वह फैसला बीजेपी की मजबूरी थी, क्योंकि बीजेपी नहीं चाहती थी कि नीतीश कुमार पाला बदलकर महागठबंधन में चले जाएं. बीजेपी को पता था कि बिहार में नीतीश की जातिगत समीकरणों पर पकड़, खासकर अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी), कुर्मी और कोइरी समुदायों में उनकी स्वीकार्यता, उसे अकेले सत्ता तक नहीं पहुंचा सकती. लेकिन यह भी सच है कि उस चुनाव में नीतीश की लोकप्रियता में गिरावट साफ दिखी थी और चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी ने जेडीयू को नुकसान पहुंचाया था.

नीतीश की वापसी और बीजेपी की निर्भरता
लेकिन, 2024 के लोकसभा चुनाव में नीतीश ने एनडीए के साथ वापसी की और जेडीयू ने 12 सीटें जीतीं, जो बीजेपी की बराबरी थी. यह प्रदर्शन नीतीश की सियासी ताकत को फिर से साबित करता है. बीजेपी को केंद्रीय सत्ता में मजबूती के लिए नीतीश की जरूरत पड़ी, जिसने उनके दबदबे को फिर से स्थापित किया. हालांकि, उनकी लगातार पाला बदलने की वजह से उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठे हैं. प्रशांत किशोर जैसे राजनीतिक रणनीतिकारों ने दावा किया है कि नीतीश की लोकप्रियता अब अपने निचले स्तर पर है और 2025 में जनता उन्हें पांचवीं बार मुख्यमंत्री बनने का मौका नहीं देगी.

क्या नीतीश पर मंथन की संभावना
मंगलवार को कांग्रेस और बुधवार को बीजेपी की सहयोगी दलों के साथ बैठकें इस बात का संकेत देती हैं कि दोनों खेमे अपने गठबंधन को मजबूत करने और नेतृत्व के सवाल को सुलझाने में लगे हैं. बीजेपी की बैठक में जेपी नड्डा, संजय झा, जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा और चिराग पासवान जैसे नेताओं की मौजूदगी से यह साफ है कि एनडीए में सीट-बंटवारे और चेहरे को लेकर चर्चा होगी. इस बीच नीतीश को चेहरा बनाने का फैसला कई कारकों पर निर्भर करेगा.

जातिगत समीकरण
नीतीश का ईबीसी और कुर्मी-कोइरी वोट बैंक अभी भी मजबूत है, जो बीजेपी के हिंदुत्व आधारित वोटों के साथ मिलकर एनडीए को मजबूती दे सकता है. बीजेपी अकेले इस समीकरण को साधने में सक्षम नहीं है. चिराग पासवान, जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा जैसे सहयोगी बीजेपी के साथ हैं, लेकिन उनकी सीमित पहुंच नीतीश की तुलना में कम है. नीतीश की अनुपस्थिति में गठबंधन कमजोर पड़ सकता है. ऐसे में बीजेपी का अपना सीएम बनाने की महत्वाकांक्षा को नुकसान पहुंच सकता है. हालांकि, बीजेपी प्लान- N यानी निशांत पर भी काम कर रही है. हो सकता है कि नीतीश कुमार की जगह उन्हें डिप्टी सीएम बना दिया जाए.

कुलमिलाकर साल 2025 में नीतीश कुमार को चेहरा बनाना बीजेपी की एक बार फिर से मजबूरी हो सकती है. हालांकि, इससे गठबंधन मजबूत होगा, लेकिन नीतीश की घटती लोकप्रियता और उनकी 74 साल की आयु और भूलने की बीमारी एक चुनौती होगी. हालांकि, दूसरे विकल्पों के तौर पर महाराष्ट्र की तरह बीजेपी बिना चेहरा घोषित किए चुनाव लड़ सकती है और जीत के बाद अपना मुख्यमंत्री चुन सकती है. लेकिन, चतुर नीतीश और बिहार की जटिल राजनीति में यह दांव उल्टा पड़ सकता है. क्योंकि, आकाश में ध्रुव तारा की तरह शायद नीतीश कुमार भी उत्तर दिशा और एक ही जगह यानी सीएम पद पर रहना चाहते हैं.

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